मध्य प्रदेश की बड़ी कामयाबी 2 साल में 36 हजार बाल विवाह रोके, 4 हजार से ज्यादा बच्चे तस्करी से बचाए

Rahul Maurya

राष्ट्रबाण: मध्य प्रदेश ने बच्चों के हक की रक्षा में एक मिसाल कायम की है। पिछले दो साल में राज्य में 36,838 बाल विवाहों को रोकने में कामयाबी हासिल हुई है। इतना ही नहीं, मानव तस्करी के चंगुल से 4,777 बच्चों को आजाद कराया गया है। ये आंकड़े जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन (JRC) नाम के संगठन ने जारी किए हैं, जो बच्चों के अधिकारों के लिए काम करता है। सरकारी एजेंसियों और 250 से ज्यादा गैर-सरकारी संगठनों के साथ मिलकर JRC ने ये कमाल किया है।

क्या कहते हैं आंकड़े?

JRC के संस्थापक भुवन रिभु ने बताया कि अप्रैल 2023 से अगस्त 2025 तक मध्य प्रदेश के 41 जिलों में ये कामयाबी मिली। इस दौरान न सिर्फ 36 हजार से ज्यादा बाल विवाह रोके गए, बल्कि 1,200 से ज्यादा बच्चों को यौन शोषण से बचाने में मदद की गई। इसके अलावा, 1,000 से ज्यादा ऑनलाइन यौन शोषण के मामलों में कानूनी कार्रवाई की गई। भुवन का कहना है कि अगर कानून को पूरी ताकत और इच्छाशक्ति के साथ लागू किया जाए, तो बच्चों को हर तरह के शोषण से बचाया जा सकता है।

कुछ जिलों में चुनौती बरकरार

मध्य प्रदेश में बाल विवाह की दर 23.1% है, जो राष्ट्रीय औसत 23.3% से थोड़ी कम है। लेकिन राजगढ़ (46%), श्योपुर (39.2%), झाबुआ (36.5%) और आगर मालवा (35.6%) जैसे जिले अभी भी इस समस्या से जूझ रहे हैं। इन इलाकों में जागरूकता और सख्ती बढ़ाने की जरूरत है। JRC का कहना है कि उनकी कोशिशें इन जिलों में भी रंग ला रही हैं, लेकिन अभी और काम करना बाकी है।

‘बाल विवाह मुक्त भारत’ का सपना

JRC ‘बाल विवाह मुक्त भारत’ अभियान का हिस्सा है, जिसका लक्ष्य 2030 तक देश से बाल विवाह को पूरी तरह खत्म करना है। इसके लिए संगठन जागरूकता फैलाने और कानूनी कार्रवाई पर जोर दे रहा है। मध्य प्रदेश में JRC के 17 सहयोगी संगठन 41 जिलों में काम कर रहे हैं। ये संगठन बाल विवाह, मानव तस्करी, यौन शोषण और बाल श्रम जैसी बुराइयों को रोकने के लिए दोहरी रणनीति पर काम करते हैं लोगों को जागरूक करना और कानून का सख्ती से पालन करवाना।

देशभर में भी शानदार काम

मध्य प्रदेश के अलावा, JRC ने पूरे देश में 3.74 लाख बाल विवाह रोके हैं। इसके साथ ही, 1 लाख बच्चों को मानव तस्करी से बचाया गया और 34 हजार यौन शोषण पीड़ित बच्चों को मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ दी गईं। 63 हजार मामलों में कानूनी कार्रवाई शुरू की गई है। भुवन रिभु का कहना है कि ये आंकड़े दिखाते हैं कि भारत बच्चों के लिए सुरक्षित देश बन सकता है, बशर्ते कानून का सही इस्तेमाल हो।

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