सिवनी, राष्ट्रबाण। जिले में इन दिनों यूरिया खाद की भारी किल्लत ने किसानों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। हालात यह हैं कि सूर्योदय के बाद से ही खाद वितरण केंद्रों पर लंबी लाइनें लग जाती हैं, लेकिन घंटों इंतजार के बाद भी अधिकांश किसानों को खाली हाथ लौटना पड़ रहा है। किसानों का कहना है कि कहीं 2 बोरी तो कहीं 5 बोरी देकर औपचारिकता पूरी की जा रही है, जबकि बड़े रकबे वाले किसान खाद न मिलने से सबसे ज्यादा परेशान हैं। बिना खाद के खरीफ फसलें पीली पड़ने लगी हैं और उत्पादन पर कालाबाजारी और किल्लत का दोहरा संकट मंडरा रहा है।
शनिवार को केवलारी स्थित खाद वितरण केंद्र पर सैकड़ों किसानों की भीड़ उमड़ी। कई किसान 40-50 किलोमीटर दूर से ट्रैक्टर और मोटरसाइकिलों से खाद लेने पहुंचे, लेकिन टोकन का इंतजार करते-करते शाम तक भी उन्हें खाद नहीं मिल सकी। किसानों ने बताया कि बिना खाए-पिए लाइन में खड़े रहना पड़ रहा है, फिर भी खाद उपलब्ध नहीं हो रही।
स्थिति यह है कि जिले के कई वितरण केंद्रों पर यूरिया की कालाबाजारी की खबरें भी सामने आई हैं। सूत्रों के अनुसार, केवलारी के एक सप्लायर विवेक अग्रवाल के द्वारा निर्धारित शासकीय मूल्य ₹270 प्रति बोरी के बजाय ₹350 में ब्लैक पर यूरिया बेचा जा रहा है। किसानों ने प्रशासन से मांग की है कि तुरंत पर्याप्त मात्रा में यूरिया खाद उपलब्ध कराई जाए, ताकि खरीफ फसलें बच सकें और किसानों की मेहनत पर पानी न फिर जाए।
दिन भर खाद वितरण केंद्र पर लगी किसानों की कतार लगी रही
जहां किसानों को पता चलता है कि खाद बट रही है वहां पर घर से 40-50 किमी दूर से भी किसान अपनी व्यवस्था कर रहा है। किसान सुधीर कुमार एवं शिव प्रसाद ने बताया कि रकबा बड़ा है और उनके यहां ब्लॉक में खाद ही नहीं है, इसलिए जिले में कही भी खबर मिलती है तब 2-5 बोरी का इंतज़ाम करना पड़ता है। दोपहर से लाइन में खड़े हैं लेकिन शाम तक कुछ नहीं मिला। बिना खाए-पिए खड़े हैं, फसलें को नुकसान हो रहा हैं। खाद नहीं मिला तो पूरी फसल का उत्पाद अच्छा नहीं होगा। जो लागत लगे वह लागत भी नहीं निकलेगी।
किसानों ने प्रशासन से मांग की है कि तुरंत यूरिया खाद की पर्याप्त व्यवस्था की जाए, ताकि खरीफ फसलें बचाई जा सकें। लगातार बारिश के बाद फसलें पीली पड़ने लगी हैं और बिना यूरिया खाद के फसल का उत्पादन गंभीर रूप से प्रभावित होगा। बारिश के लगातार दौर में जैसे तैसे किसानों ने खरीफ की फसल की बुआई तो कर डाली, लेकिन अब उसी फसल को बचाने के लिए अब वह खाद की कमी से जूझ रहे हैं।
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