चुनाव के करीब नेताओ के समर्थक अपने पसंद के नेताओ के गुणगान और तारीफों के पुल बांधने से चूकते नहीं। डिजिटल टीम बना कर कई आईडी बना कर प्रमोट किया जाता है। ऐसे ही बालाघाट जिले में गौरीशंकर बिसेन और उनकी पुत्री मौषम बिसेन हरिनखेड़े के समर्थको में देखने को मिला जहां विधानसभा चुनाव के पूर्व बड़ी ही गर्मजोशी से अपने नेताओ के जयकारे लगाते हुए इनकी तारीफों के कसीदे पढ़ते नहीं थकते लेकिन अब यही टीम जिले से नदारत नजर आ रही है।
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बालाघाट, राष्ट्रबाण। कुछ माह पूर्व हुए विधानसभा चुनाव मे गौरीशंकर बिसेन और मौसम बिसेन हरिनखेड़े के कार्यकर्ता टीम मौसम के नाम पर केम्पनिंग किया। इससे साफ जाहिर हो रहा था कि हर कोई मौसम बिसेन हरिनखेड़े को हर हाल मे विधानसभा की टिकिट दिलवाना चाह रहा था। जिसमे कार्यकर्ताओ की मेहनत रंग भी ले आई और आखिरकार विधानसभा चुनाव मे मौसम बिसेन हरिनखेड़े को विधानसभा क्षेत्र 111 से पार्टी द्वारा प्रत्याशी घोषित भी किया गया। परन्तु उसके कुछ दिन बाद ही मौसम बिसेन हरिनखेडे का स्वास्थ्य ठीक ना होने और निजी कारणों से आनन फ़ानन मे पार्टी हाईकमान ने अपना निर्णय तत्काल बदलते हुए गौरीशंकर बिसेन को ही अपना प्रत्याशी बनाया। मगर उसके बावजूद भी भाजपा बालाघाट विधानसभा पर अपना कब्ज़ा नहीं जमा पाई और बिसेन परिवार को इस बार हार का सामना करना पड़ा।
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कहते है ना, कि ज़ब तक आप सत्ता मे है तब तक आपकी पूछ-परख है। लेकिन जैसे ही आप राजनैतिक कुर्सी से हटे, आपके इर्द-गिर्द की भीड़ स्वतः ही कम होने लगती है। इसका एक उदाहरण पूर्व मुख्य्मंत्री शिवराज सिंह चौहान भी है जिन्होंने अपना दर्द बया करते हुए एक कार्यक्रम में कहा था की जब तक आप मुख्यमंत्री आपके चरण कमल के सामान और पद से हटते ही फ्लैक्स बैनर से आपकी फोटो ऐसे गायब होती है जैसे गधे के सर से सींग। कुछ ऐसा ही हुआ है बालाघाट जिले की राजनीति में दिग्गज परिवार कहे जाने वाले गौरीशंकर बिसेन और मौसम हरिनखेड़े के साथ है। हालांकि समाज और आम जनता के बीच मे बिसेन परिवार की छवि बहुत अच्छी है। परन्तु हर कोई इस बात के लिए जरूर कोसता है कि गौरीशंकर बिसेन ने अपने पुरे राजनैतिक कॅरियर मे अपने परिवार और दो-चार खास लोगो के अलावा कभी किसी को ऊपर उठने नहीं दिया। जिसका परिणाम यही है कि सत्ता से हटते ही बिसेन परिवार के शुभचिंतक और टीम मौसम अब नजर ही नहीं आं रही है। जैसे ही नानो कावरे जिलाध्यक्ष बने, टीम मौसम टूट कर बिखर गई और बहुत से कार्यकर्ता रामकिशोर कावरे के खेमे मे शामिल हो गए। क्यूंकि डूबते सूरज को कोई प्रणाम करना पसंद नहीं करता।
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अब फिर से लोकसभा चुनाव आ रहा है और मौसम हरिनखेड़े का नाम लोकसभा प्रत्याशी के रूप मे देखा जा रहा है, जिनकी पहचान ही पिता के नाम पर है। अब उनकी टीम बिखरी हुई है। लोकसभा चुनाव के प्रत्याशीयों की दौड़ मे मौसम हरिनखेड़े का नाम जरूर है, लेकिन टीम मौसम पूरी निष्क्रिय नजर आ रही है। क्या पिता के नाम पर फिर से मौसम बिसेन हरिनखेड़े को लोकसभा का प्रत्याशी बनाया जायेगा? क्या जनता बाप बेटी की तिलस्म पर फिर से भरोसा जता पायेगी? हालांकि गौरी पुत्री मौषम ने अपने पिता के पदों पर रहते जिले और क्षेत्र के लिए कोई ऐसा काम नहीं किया जिसे जनता याद रखे।