सिवनी, संजय बघेल। सिवनी जिले में पुलिस पर लगे एक करोड़ 45 लाख रुपये की लूट के गंभीर आरोपों ने पूरे महकमे को हिला कर रख दिया है। इस सनसनीखेज प्रकरण में 10 पुलिस अधिकारी और कर्मचारियों को निलंबित कर दिया गया है, लेकिन सवाल अब भी अनगिनत हैं और जाँच की निष्पक्षता को लेकर संदेह गहराता जा रहा है। यह मामला जिले के इतिहास में पहली बार देखने को मिला है जब लुटेरों और चोरों को पकड़ने वाली पुलिस स्वयं लुटेरी और आरोपी की भूमिका में आ गई है।
लोगों के बीच चर्चा जोरों पर है कि इतनी बड़ी राशि आखिरकार बिना किसी उच्चाधिकारी की जानकारी के कैसे गायब हो सकती है। जिस पुलिस पर जनता की सुरक्षा की जिम्मेदारी होती है, वही जब शक के घेरे में आ जाए, तो पूरे तंत्र की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगना स्वाभाविक है।
CSP पूजा पांडेय का फोन कॉल बना सवालों का केंद्र
मामले में सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि घटना वाले दिन जब पुलिस द्वारा कार्रवाई की जा रही थी, उस दौरान सीएसपी पूजा पांडेय द्वारा किए गए एक फोन कॉल में वह किसी को “सर” कहकर संबोधित कर रही थीं। यह फोन किसे किया गया था? क्या कोई उच्चाधिकारी इस पूरे घटनाक्रम को परदे के पीछे से नियंत्रित कर रहा था? यह कॉल अब जांच का अहम हिस्सा बन गया है और इसे लेकर कई अटकलें लगाई जा रही हैं।
जानकारों का मानना है कि यह कॉल ही पूरे मामले की दिशा तय कर सकता है। यदि कॉल डिटेल रिकॉर्ड (CDR) सामने आते हैं तो यह स्पष्ट हो सकता है कि इस लूटकांड में और कौन-कौन से बड़े चेहरे शामिल हैं।
जांच अधिकारी बदले जाने पर भी उठे सवाल
इस मामले में शुरुआत में जांच का जिम्मा एडिशनल एसपी दीपक मिश्रा (जो घटना के दिन एसपी के प्रभार में थे) को सौंपा गया था, लेकिन कुछ ही घंटों के भीतर उन्हें जांच से हटा दिया गया और उनके स्थान पर जबलपुर से आईपीएस अधिकारी आयुष गुप्ता को जांच अधिकारी नियुक्त किया गया। साथ ही उन्हें तीन दिन के भीतर जांच रिपोर्ट जबलपुर आईजी को सौंपने के निर्देश दिए गए।
अब बड़ा सवाल यह है कि आखिरकार दीपक मिश्रा को जांच से हटाने की क्या वजह रही? क्या उनके द्वारा उठाए गए प्रारंभिक कदमों से कुछ असहज सच्चाइयों की ओर इशारा मिलने लगा था? या फिर मामला बहुत बड़ा था, जिसे संभालने के लिए किसी “विश्वसनीय” अधिकारी को लाना जरूरी समझा गया?
क्या कॉल डिटेल से उठेगा पर्दा?
कानून के जानकारों और पूर्व पुलिस अधिकारियों का मानना है कि कॉल डिटेल रिपोर्ट (CDR) इस पूरे मामले में सबसे निर्णायक साबित हो सकती है। यदि संबंधित पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों की घटना के दिन की कॉल डिटेल्स निकाली जाती हैं, तो यह स्पष्ट हो सकता है कि किसने किससे संपर्क किया, किसे निर्देश दिए गए और कौन इस लूट की साजिश में शामिल हो सकता है।
कानून के जानकारो का कहना है कि केवल निलंबन से जिम्मेदारी पूरी नहीं होती। असली साजिशकर्ताओं को सामने लाने के लिए तकनीकी सबूतों को खंगालना जरूरी है। कॉल डिटेल से यह भी पता चल सकता है कि क्या किसी राजनीतिक या प्रशासनिक दबाव में यह सारा खेल रचा गया था? जिसके इशारे में इतनी बड़ी राशि को हड़पा गया। जो पुलिस न्याय दिलाने के लिए जानी जाती थी अब स्वयं लुटेरे के रूप में जानी जा रही है।