सिवनी, राष्ट्रबाण। दीपक तले अंधेरा वाली कहावत आपने सुनी होगी, लेकिन अगर इसे साक्षात देखना हो तो आप एक बार नगर पालिका सिवनी के कार्यालय पधारिए। जहां नगर में स्वच्छता का पाठ पढ़ाने वाले हुक्मरानों के अपने दफ्तर में स्वच्छता अभियान की खुले आम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। कार्यालय के भीतर की तस्वीरें शासन के दावों के गाल पर एक जोरदार तमाचा हैं।
नगर पालिका की सीढ़ियों को देखकर ऐसा लगता है जैसे यहाँ महीनों से झाड़ू ने कदम नहीं रखे। दीवारों पर गंदगी की परतें और कोनों में जमा धूल यह बताने के लिए काफी है कि जिम्मेदार अधिकारी अपनी कुर्सी से उठकर गलियारों का मुआयना करना भी गवारा नहीं समझते। जिस रास्ते से जनता अपनी समस्याएं लेकर पहुँचती है, वह रास्ता खुद बदहाली का रोना रो रहा है।
शोभा की वस्तु बना गमला, मुरझा गई नैतिकता
कार्यालय के बाहर रखा वह विशाल सजावटी गमला अब केवल कबाड़ का हिस्सा नजर आ रहा है। पौधों की जगह उसमें सूखी पत्तियां और कचरा भरा पड़ा है। यह गमला नगर पालिका की कार्यप्रणाली का सटीक प्रतीक है। ऊपर से दिखावा, अंदर से खोखलापन। बाहर की दीवारों पर करोड़ों खर्च कर पेंटिंग तो बनवा दी गई, लेकिन उसके ठीक नीचे पसरी गंदगी प्रशासन की मंशा पर सवालिया निशान लगा रही है।
अभियान कागजी खानपूर्ति और विज्ञापन तक सीमित
क्या स्वच्छता के नाम पर आने वाला बजट सिर्फ कागजी खानापूर्ति और विज्ञापनों तक सीमित है? जब नगर पालिका अपना दफ्तर साफ नहीं रख सकती, तो वह शहर को ‘स्मार्ट’ बनाने का दावा कैसे कर सकती है? क्या आला अधिकारी इन गलियारों से गुजरते वक्त अपनी आँखें बंद कर लेते हैं? नगर पालिका प्रशासन को चाहिए कि वह फोटो खिंचवाने और भाषण देने से इतर, अपने दफ्तर की इस बदहाली को सुधारे। वरना जनता अब यह पूछने लगी है। साहब, दूसरों का आंगन साफ करने से पहले, अपना घर तो झाड़ लीजिए!
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