शेयर मार्केट धड़ाम : 10 लाख करोड़ डूबे, बाजार में ताबड़तोड़ गिरावट

Rashtrabaan
Highlights
  • अमेरिका में हलचल, भारत तक बड़ा असर
  • सेंसेक्स 2222 अंक गिरा, निफ्टी 24,055 बंद

नई दिल्ली, राष्ट्रबाण। अमेरिका के कारण भारतीय शेयर मार्केट धड़ाम हो गए। ताबड़तोड़ गिरावट से निवेशकों के 10 लाख करोड़ रुपये डूब गए। कमजोर वैश्विक संकेतों को दर्शाते हुए भारतीय बेंचमार्क सूचकांक, सेंसेक्स और निफ्टी गिरावट के साथ खुले। बीएसई सेंसेक्स 2,393.77 अंक गिरकर 78,588.19 पर, जबकि एनएसई निफ्टी 414.85 अंक गिरकर 24,302.85 पर आ गया। कारोबार के अंत में सेंसेक्स 2222.55 (2.74%) अंक गिरकर 78,759.40 के स्तर और निफ्टी 662.10 अंक टूटा, ये 24,055 के स्तर पर बंद हुआ। निक्केई की अगुवाई में एशियाई बाजारों में भारी गिरावट आ रही है, जो हाल ही में 10% से अधिक की गिरावट के बाद 6% से अधिक गिर गया। कोरिया, ताइवान और ऑस्ट्रेलिया सहित अन्य एशियाई बाजारों में 2.5% से 7% तक की गिरावट देखी गई। शेयर मार्केट में गिरावट की बड़ी बजह अमेरिका में मंदी का डर है। इससे बाजार में बड़ी कमजोरी आई। कमजोर आर्थिक आंकड़ों के चलते वहां अब मंदी का डर सताने लगा है।

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अमेरिका की वो रिपोर्ट, जिसने मचाया हाहाकार

आखिर दुनियाभर के शेयर मार्केट में इतनी बड़ी गिरावट की वजह क्या है? दरअसल, इसके लिए अमेरिका के नौकरियों के आंकड़ों को जिम्मेदार माना जा रहा है। शुक्रवार को अमेरिका ने नौकरियों पर डेटा जारी किया था। इसमें सामने आया था कि अमेरिका में बेरोजगारी दर लगातार बढ़ रही है। इससे अमेरिका में मंदी की आशंका पैदा हो गई है। अमेरिका से आए नौकरियों के इस डेटा ने दुनियाभर में हलचल पैदा कर दी है। सवाल उठने लगा है कि क्या दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में आने वाली है?

क्या कहता है अमेरिकी का नौकरियों का डेटा?

बीते शुक्रवार को अमेरिका के ब्यूरो ऑफ लेबर स्टेटिस्टिक्स ने नौकरियों पर डेटा जारी किया था। इसमें बताया था कि जुलाई में 1.14 लाख लोगों को ही नौकरियां मिलीं। जबकि, अब तक हर महीने औसतन 2.15 लाख नौकरियां मिलती थीं। इसमें बताया गया है कि जुलाई लगातार तीसरा महीना रहा, जब बेरोजगारी दर बढ़ी। जुलाई में बेरोजगारी दर 4.3% रही। जबकि, इससे पहले जून में 4.1% और मई में 4% थी। जुलाई में बेरोजगारी दर का आंकड़ा अक्टूबर 2021 के बाद सबसे ज्यादा रहा। आंकड़े बताते हैं कि पुरुषों में बेरोजगारी दर 4% और महिलाओं में 3.8% रही। सबसे ज्यादा बेरोजगारी दर ब्लैक और अफ्रीकी-अमेरिकियों में रही। ब्लैक और अफ्रीकी-अमेरिकियों में बेरोजगारी दर 6.3% रही, जबकि जुलाई 2023 में ये 5.7% थी।

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इन आंकड़ों ने बढ़ाई चिंता

  • जुलाई में बेरोजगारी दर 0.2% बढ़कर 4.3% हो गई। इस महीने 3.52 लाख लोग बेरोजगार हो गए। अमेरिका में जुलाई तक कुल 72 लाख लोग बेरोजगार थे।
  • बेरोजगारों में तकरीबन 11 लाख लोग ऐसे हैं, जिन्हें अस्थाई तौर पर नौकरी से निकाला गया है। यानी, इन्हें बाद में फिर से नौकरी पर रखा जा सकता है। जबकि, 17 लाख लोग ऐसे हैं जिन्हें कंपनियों ने स्थाई तौर पर नौकरी से निकाल दिया है।
  • अमेरिका में लंबे वक्त से बेरोजगारों की संख्या भी सालभर में तीन लाख से ज्यादा बढ़ गई है। जुलाई तक अमेरिका में 15 लाख से ज्यादा लोग ऐसे थे, जो लंबे वक्त से बेरोजगार हैं। जबकि, एक साल पहले तक ऐसे बेरोजगारों की संख्या 12 लाख के आसपास थी।
  • इतना ही नहीं, एक महीने में लोगों की औसत कमाई में भी मामूली गिरावट आई है। जून में एक व्यक्ति की हफ्तेभर की औसत कमाई 1,200.16 डॉलर थी। जुलाई में ये थोड़ी कम होकर 1,199.39 डॉलर हो गई।

मंदी की आशंका क्यों?

अमेरिकी सरकार ने बेरोजगारी पर जुलाई के जो आंकड़े जारी किए हैं, उससे मंदी की आशंका पैदा हो गई है। अमेरिका में मंदी को लेकर एक नियम चलता है। ये नियम कहता है कि अगर लगातार तीन महीने तक बेरोजगारी दर पिछले साल के निचले स्तर से आधे प्वॉइंट भी बढ़ जाती है, तो मान लेना चाहिए कि मंदी आ गई है। आंकड़े बताते हैं कि अमेरिका में लगातार पांच महीने से बेरोजगारी दर बढ़ रही है। मार्च में बेरोजगारी दर 3.8% थी, जो जुलाई में बढ़कर 4.3% हो गई। इतना ही नहीं, अमेरिका में जुलाई में लगभग ढाई लाख लोगों को कंपनियों ने छंटनी में नौकरी से निकाल दिया। पिछले साल भी एपल, माइक्रोसॉफ्ट और गूगल जैसी बड़ी टेक कंपनियों ने लगभग दो लाख छंटनियां की थीं।

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जानकार यह कहते हैं

इसे अमेरिका में मंदी आने के संकेत दिख रहे हैं। हालांकि, कुछ जानकारों का मानना है कि बेरोजगारी दर और छंटनियों से मंदी का संकेत नहीं मिलता। एक्सपर्ट्स का मानना है कि बेरोजगारी दर में बढ़ोतरी छंटनियों के कारण नहीं, बल्कि लेबर मार्केट में अप्रवासियों की संख्या बढ़ने की वजह से हो रही है।

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भारतीय बाजार में अस्थिरता बढ़ेगी

विश्लेषकों का अनुमान है कि येन के व्यापार में कमी, भू-राजनीतिक तनाव और विकसित अर्थव्यवस्थाओं में कथित मंदी जैसे कारकों के कारण भारतीय बाजार में अस्थिरता बढ़ेगी। हाल के कमजोर अमेरिकी नौकरी डेटा और सौम्य मुद्रास्फीति के माहौल ने सितंबर में फेडरल रिजर्व दर में कटौती की उम्मीदें बढ़ा दी हैं। इन वैश्विक दबावों के बावजूद, विश्लेषकों को उम्मीद है कि भारतीय बाजार मजबूत होंगे, क्योंकि आय उच्च मूल्यांकन के अनुरूप है।

बाजार की चाल काफी दिन से प्रभावित

इस सप्ताह बाजार की चाल को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों में 8 अगस्त को आरबीआई का ब्याज दर निर्णय, व्यापक आर्थिक डेटा और वैश्विक रुझान शामिल हैं। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने जुलाई में महत्वपूर्ण निवेश के बाद इक्विटी में ₹1,027 करोड़ की बिक्री करते हुए अगस्त की शुरुआत सावधानी के साथ की है। आर्थिक चिंताओं के बीच जापानी निक्केई की निरंतर गिरावट भारतीय बाजारों को प्रभावित करने वाले वैश्विक संदर्भ को उजागर करती है।

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