सिवनी, संजय बघेल। कानून सबके लिए बराबर है, अगर यह दुनिया का सबसे बड़ा झूठ कहा जाए तो गलत नहीं होगा। और इसका सबसे बड़ा उदाहरण इन दिनों सिवनी जिले में देखने को मिल रहा है, जहां खाकी पहनने वाले कुछ पुलिसकर्मियों पर हवाला का पैसा लूटने के संगीन आरोप लगे हैं, लेकिन अब तक उनके खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है।
8-9 अक्टूबर की रात पुलिस के कुछ भ्रष्ट अफसरों और कर्मचारियों के लिए मानो ‘बड़ी दिवाली’ आई थी। सिलादेही क्षेत्र में एक क्रेटा वाहन से 2 करोड़ 96 लाख 50 हजार रुपये की बरामदगी हुई। लेकिन इस रकम को देखकर पुलिसकर्मियों की नीयत डगमगा गई और हवाला कारोबारी से कथित रूप से 50-50 की डील कर ली गई। कहा जा रहा है कि डील के तहत तय हिस्से से भी 25 लाख रुपये और हड़प लिए गए। यहीं से खेल बिगड़ा और मामला सुर्खियों में आ गया।
कथित लूट की रकम 1.45 करोड़
हवाला कारोबारी के अनुसार, पुलिस ने कुल 1 करोड़ 45 लाख रुपये की हेराफेरी की है। अब पूरा मामला सिवनी पुलिस की छवि पर कलंक बनकर उभरा है। इतना ही नहीं, इसे दबाने के लिए भीतरखाने प्रयास भी शुरू हो चुके हैं। चर्चा है कि रसूखदार पुलिस अफसरों को बचाने की कोशिश की जा रही है, और कानून सिर्फ एक पक्ष यानी आम आदमी पर ही लागू हो रहा है। बताया जा रहा है की पूरी राशि में 25 लाख का हिसाब अब भी नहीं मिल रहा है जिसे कुछ पुलिसकर्मी जंगल की खाख छान रहे है।
विभागीय विभीषण और अंदरूनी राजनीति
पैसे के इस खेल ने महकमे के भीतर की दरारें भी उजागर कर दी हैं। विभागीय सूत्रों की मानें तो एक सीनियर अधिकारी को बदनाम करने के लिए खुद विभाग का ही अफसर “सुपारी” स्टाइल में काम कर रहा है। कुछ अधिकारी खुद को पाक-साफ बताने के लिए अपने ही साथियों के खिलाफ सबूत जुटाने में लगे हैं। यानी विभाग के भीतर अब “मैं नहीं, वो दोषी है” की होड़ मची हुई है।
एडिशनल एसपी दीपक मिश्रा पर सवाल क्यों?
मामले में सिवनी एडिशनल एसपी दीपक मिश्रा पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। चर्चा है कि मिश्रा सेवानिवृत्ति से पहले सिवनी में “विशेष मकसद” से पदस्थ हुए हैं। इससे पहले भी जब पुलिस अधीक्षक जिले में मौजूद नहीं थे, तब भी वह विवादों में रहे हैं। स्कॉट की वसूली हो या फिर यह हवाला कांड, हर बार जब एसपी बाहर होते हैं, तब मिश्रा चर्चा में आ जाते हैं। इस बार भी जब 1.45 करोड़ की कथित लूट का मामला हुआ, उस समय एसपी जिले से बाहर थे और मिश्रा जांच अधिकारी बनाए गए। लेकिन कुछ ही घंटों में उन्हें जांच से हटा दिया गया, जिसने संदेह की सुई और तेज कर दी है।
केवल हवाला कारोबारी पर कार्रवाई, खाकी अब तक ‘सुरक्षित’
इस मामले की सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि हवाला कारोबारी के खिलाफ तो लखनवाड़ा थाने में मामला दर्ज होना बताया जा रहा है, लेकिन जिन पुलिसकर्मियों पर करोड़ों रुपये की लूट के आरोप लगे हैं, वे अब तक जांच की आड़ में बचे हुए हैं। आखिर जब हवाला की रकम पुलिस के कब्जे में मिली, और कारोबारी खुद लूट की बात कह रहा है, तो खाकीधारी लुटेरों पर एफआईआर क्यों नहीं?
जनता पूछ रही है सवाल, लेकिन जवाबदार मौन
शहर में अब चर्चा तेज है कि यह पूरा मामला ऊपर के अधिकारियों के संरक्षण में दबाया जा रहा है। आम जनता से लेकर मीडिया तक पूछ रही है, जब आरोपी आम नागरिक होता है तो तुरंत कार्रवाई होती है, लेकिन जब आरोपी वर्दीधारी होता है, तो कानून क्यों मौन हो जाता है?