मुख्य चुनाव आयुक्त के खिलाफ विपक्ष का हल्ला बोल ,ज्ञानेश कुमार पर महाभियोग प्रस्ताव की तैयारी

Rahul Maurya

नई दिल्ली, राष्ट्रबाण: विपक्षी गठबंधन INDIA ब्लॉक ने मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) ज्ञानेश कुमार के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की योजना बनाई है। यह कदम लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी द्वारा कर्नाटक, महाराष्ट्र, और हरियाणा में ‘वोट चोरी’ के गंभीर आरोपों के बाद उठाया गया है। विपक्ष का दावा है कि चुनाव आयोग ने मतदाता सूची में गड़बड़ियाँ कर सत्तारूढ़ BJP का पक्ष लिया। इस बीच, CEC ने इन आरोपों को खारिज करते हुए राहुल गांधी से सात दिनों के भीतर शपथपत्र देने या माफी माँगने की माँग की है।

राहुल गांधी के आरोप और EC का जवाब

राहुल गांधी ने 7 अगस्त को दावा किया था कि बेंगलुरु सेंट्रल के महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र में 1,00,250 वोटों की चोरी हुई, जिससे BJP को लोकसभा चुनाव में जीत मिली। उन्होंने डुप्लिकेट नाम, अवैध पते, और एक ही पते पर 80 मतदाताओं के पंजीकरण जैसे उदाहरण दिए। राहुल ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग ने मतदान बूथों के CCTV और वेबकास्टिंग फुटेज को 45 दिनों तक सीमित कर सबूत नष्ट किए। जवाब में, CEC ज्ञानेश कुमार ने रविवार को दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इन दावों को ‘बेबुनियाद’ और ‘संविधान का अपमान’ बताया। उन्होंने कहा, “राहुल गांधी को सात दिनों में शपथपत्र देना होगा या देश से माफी माँगनी होगी। कोई तीसरा विकल्प नहीं है।”

विपक्ष का गठजोड़ और महाभियोग की योजना

सोमवार को कांग्रेस अध्यक्ष और राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे की अध्यक्षता में INDIA ब्लॉक के फ्लोर नेताओं की बैठक में महाभियोग प्रस्ताव पर चर्चा हुई। कांग्रेस सांसद सैयद नासिर हुसैन ने कहा, “लोकतंत्र में उपलब्ध हर हथियार का इस्तेमाल करेंगे।” विपक्ष ने CEC की टिप्पणियों को BJP की भाषा जैसा बताते हुए उनकी निष्पक्षता पर सवाल उठाए। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने पूछा कि क्या आयोग सुप्रीम कोर्ट के 14 अगस्त के आदेशों का पालन करेगा, जिसमें बिहार की SIR प्रक्रिया में हटाए गए 65 लाख मतदाताओं के नाम वेबसाइट पर अपलोड करने को कहा गया था।

महाभियोग की प्रक्रिया

संविधान के अनुच्छेद 324(5) के तहत, मुख्य चुनाव आयुक्त को सुप्रीम कोर्ट के जज की तरह ही हटाया जा सकता है, जिसके लिए संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से महाभियोग प्रस्ताव पारित होना जरूरी है। प्रस्ताव को लोकसभा में कम से कम 100 और राज्यसभा में 50 सांसदों के हस्ताक्षर की जरूरत होती है। इसके बाद एक तीन सदस्यीय समिति, जिसमें सुप्रीम कोर्ट का एक जज, हाई कोर्ट का एक मुख्य न्यायाधीश, और एक प्रतिष्ठित विधिवेत्ता शामिल होता है, जाँच करती है। अंत में, राष्ट्रपति प्रस्ताव को मंजूरी देते हैं। हालाँकि, NDA की संसद में 422 सांसदों की ताकत के सामने विपक्ष के पास जरूरी बहुमत नहीं है, फिर भी यह कदम प्रतीकात्मक विरोध के रूप में देखा जा रहा है।

BJP का पलटवार

BJP ने विपक्ष के इस कदम की कड़ी आलोचना की। BJP सांसद संबित पात्रा ने कहा, “विपक्ष का मकसद घुसपैठियों को बचाना और तुष्टिकरण की राजनीति करना है।” उन्होंने बिहार में SIR प्रक्रिया को घुसपैठियों को हटाने का स्वाभाविक कदम बताया। CEC ने भी कहा कि बिहार में SIR प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी थी और 7 करोड़ मतदाताओं की विश्वसनीयता इसके पीछे है।

सियासी तनाव का नया दौर

विपक्ष की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ और महाभियोग की योजना से सियासी तनाव बढ़ गया है। कांग्रेस का कहना है कि यह कदम मतदाताओं के अधिकारों और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए है। दूसरी ओर, आयोग ने मतदाता गोपनीयता का हवाला देते हुए CCTV फुटेज साझा करने से इनकार किया और महाराष्ट्र में मतदाता सूची में गड़बड़ी के दावों को खारिज किया। यह विवाद चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठा रहा है, और आने वाले दिन इस टकराव को और गहरा सकते हैं।

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