20 मौतों के बाद गृह मंत्री का इस्तीफा, सोशल मीडिया बैन हटा, क्या सफल हुए Gen-Z प्रोटेस्ट?

Rahul Maurya

काठमांडू, राष्ट्रबाण: नेपाल में सोशल मीडिया बैन के खिलाफ GEN-Z युवाओं के हिंसक प्रदर्शनों ने सरकार को झुकना पड़ा। सोमवार, 9 सितंबर 2025 को काठमांडू और अन्य शहरों में हुई झड़पों में कम से कम 20 लोग मारे गए और 300 से ज्यादा घायल हुए। इस संकट के बीच गृह मंत्री रमेश लेखक ने नैतिक आधार पर इस्तीफा दे दिया। सरकार ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर लगाए गए बैन को भी हटा लिया। लेकिन सवाल उठता है कि युवाओं को क्या हासिल हुआ? आइए जानते हैं इस घटनाक्रम की पूरी कहानी।

प्रदर्शनों का दौर

नेपाल सरकार ने 4 सितंबर को फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब, व्हाट्सएप और एक्स जैसे 26 प्लेटफॉर्म्स पर बैन लगा दिया था। कारण था कि ये कंपनियां पंजीकरण न कराना। जेन-जेड युवाओं ने इसे अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला माना और रविवार से शांतिपूर्ण प्रदर्शन शुरू किए। लेकिन सोमवार को हालात बिगड़ गए। काठमांडू के मैतीघर मंडला से शुरू हुए विरोध में प्रदर्शनकारी संसद परिसर में घुस गए। पुलिस ने आंसू गैस, रबर बुलेट्स और पानी की बौछारों से जवाब दिया, जिससे हिंसा भड़क गई।

प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने मृतकों पर शोक जताया, लेकिन कहा कि शांतिपूर्ण आंदोलन में ‘अवांछित तत्वों’ की घुसपैठ से हिंसा हुई। उन्होंने बल प्रयोग को सार्वजनिक संपत्ति बचाने का जरूरी कदम बताया।

गृह मंत्री का इस्तीफा

हिंसा के बाद गृह मंत्री रमेश लेखक ने इस्तीफा दे दिया। उन्होंने कहा कि नैतिक जिम्मेदारी के तहत यह कदम उठाया। इससे सरकार पर दबाव बढ़ा। काठमांडू में सेना तैनात करनी पड़ी, जो संसद के आसपास सड़कों को नियंत्रित करने लगी। ललितपुर, पोखरा, बुटवल और इटहरी जैसे शहरों में कर्फ्यू लगा दिया गया। प्रतिबंधित इलाकों में धरना-प्रदर्शन पर रोक लगा दी गई।

सोशल मीडिया बैन हटा

सरकार ने आखिरकार सोशल मीडिया बैन हटा लिया। प्रधानमंत्री ओली ने कहा कि उनका मकसद बैन नहीं, बल्कि रेगुलेशन था। लेकिन युवाओं को लगता है कि यह सेंसरशिप था। कंप्यूटर एसोसिएशन ऑफ नेपाल (CAN) ने चेतावनी दी थी कि बैन से शिक्षा, व्यापार और संचार प्रभावित होगा। सोशल मीडिया पर ‘नेपो किड’ ट्रेंड वायरल हो गया, जिसमें नेताओं के बच्चों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया गया।

पत्रकारों का विरोध

पत्रकारों ने काठमांडू में धरना दिया और बैन को मीडिया स्वतंत्रता पर हमला बताया। हिंसा में कई पत्रकार घायल हुए। अस्पतालों में मरीजों को दूसरे केंद्रों में शिफ्ट किया जा रहा है, क्योंकि चोटें गंभीर हैं।

युवाओं को क्या मिला?

प्रदर्शनों से गृह मंत्री का इस्तीफा और बैन हटना तो हासिल हुआ, लेकिन 20 मौतें और घायलों की संख्या दुखद है। युवा भ्रष्टाचार और शासन की नाकामी के खिलाफ लड़ रहे थे। सरकार का रेगुलेशन का दावा सही लगता है, लेकिन युवाओं को लगता है कि यह दमन था। अब देखना है कि क्या ये बदलाव स्थायी होंगे।

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