नेपाल: आर्मी चीफ के पीछे राजा पृथ्वीनारायण शाह का पोर्ट्रेट, क्या लौट रही है राजशाही की आहट?

नेपाल में जारी राजनीतिक अस्थिरता के बीच आर्मी चीफ जनरल अशोक राज सिग्देल का राष्ट्र को संबोधन सुर्खियों में है, लेकिन असल चर्चा उनके पीछे टंगे नेपाल के संस्थापक राजा पृथ्वीनारायण शाह के पोर्ट्रेट की हो रही है। अशांत माहौल में यह विज़ुअल लोगों को महज़ संयोग नहीं, बल्कि राजशाही और हिंदू राष्ट्र की संभावित वापसी का संकेत लग रहा है।

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नेपाल इन दिनों राजनीतिक भूचाल से गुजर रहा है। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के इस्तीफे और सरकार विरोधी प्रदर्शनों में 20 से ज्यादा लोगों की मौत के बीच मंगलवार को नेपाल आर्मी चीफ जनरल अशोक राज सिग्देल ने राष्ट्र को संबोधित किया। लेकिन उनके भाषण से ज्यादा चर्चा उस विज़ुअल की हुई, जिसमें उनके पीछे नेपाल के संस्थापक राजा पृथ्वीनारायण शाह का पोर्ट्रेट साफ दिखाई दिया। सोशल मीडिया पर इसे महज संयोग न मानते हुए, कई लोग इसे ‘बड़ा विज़ुअल मैसेज’ और ‘राजशाही व हिंदू राष्ट्र की वापसी का संकेत’ करार दे रहे हैं।

कौन थे पृथ्वीनारायण शाह?

साल 1723 में गोरखा राज्य में जन्मे पृथ्वीनारायण शाह महज 20 साल की उम्र में राजा बने। उन्होंने बिखरे हुए 50 से ज्यादा छोटे राज्यों को एकजुट करके आधुनिक नेपाल की नींव रखी। 1744 में नुवाकोट और 1769 में काठमांडू घाटी के तीन प्रमुख मल्ला राज्यों—काठमांडू, पाटन और भक्तपुर को जीतकर नेपाल की राजधानी काठमांडू बनाई। उन्होंने अंग्रेज भारत से देश की सीमाओं को बचाए रखा और नेपाल को एक बहु-जातीय राष्ट्र के रूप में प्रस्तुत किया, जिसे उन्होंने “चार जाति और 36 वर्णों का फूलों का बगीचा” कहा।

पृथ्वीनारायण शाह ने न सिर्फ गोरखा सेना को आधुनिक बनाया बल्कि गुरिल्ला युद्ध की रणनीति भी दी। उनकी तुलना कई इतिहासकार अमेरिका के संस्थापक जॉर्ज वॉशिंगटन से भी करते हैं। आज भी नेपाल आर्मी की जड़ें उन्हीं से जुड़ी मानी जाती हैं, और सैन्य संस्थान, अस्पताल व बैरक उनके नाम पर चलते हैं। यही कारण है कि आर्मी चीफ के पीछे उनकी तस्वीर को प्रतीकात्मक नजर से देखा जा रहा है।

राजशाही की वापसी की मांग

नेपाल का हालिया इतिहास उथल-पुथल से भरा रहा है। 2000 के दशक में माओवादी विद्रोह में 17,000 लोग मारे गए और 2008 में राजशाही समाप्त कर गणराज्य लागू कर दिया गया। लेकिन इसके बाद के 17 साल में 13 सरकारें बदल चुकी हैं। राजनीतिक अस्थिरता और भ्रष्टाचार से त्रस्त जनता का एक बड़ा वर्ग अब फिर से राजशाही और हिंदू राष्ट्र की मांग कर रहा है।

मार्च 2024 में काठमांडू में हुए प्रदर्शनों ने इस मांग को हवा दी। व्यापारी बने माओवादी नेता दुरगा प्रसाई के नेतृत्व में हुए इन प्रदर्शनों में संवैधानिक राजशाही और हिंदू राष्ट्र की बहाली की मांग उठी। हिंसा में दो लोगों की मौत हुई और कई घायल हुए। अब जेन-ज़ी की अगुवाई में चल रहे ताजा प्रदर्शनों में भी यही मुद्दे गूंज रहे हैं।

फुल सर्कल की ओर नेपाल?

2008 में जिस कम्युनिस्ट और माओवादी आंदोलन ने राजशाही को गिराया था, आज उसी व्यवस्था के खिलाफ नेपाल की सड़कें उबल रही हैं। सोशल मीडिया पर कई लोग लिख रहे हैं कि नेपाल “फुल सर्कल” में आ चुका है। सवाल यह है कि क्या जनता का गुस्सा और सेना का प्रतीकात्मक संदेश देश को फिर से राजशाही की ओर मोड़ सकता है?

फिलहाल जनरल सिग्देल संयम बरतने और शांति बनाए रखने की अपील कर रहे हैं। लेकिन उनके पीछे टंगा पृथ्वीनारायण शाह का पोर्ट्रेट बता रहा है कि नेपाल की राजनीति सिर्फ सत्ता के खेल तक सीमित नहीं है, बल्कि इतिहास की गूंज भी इसमें गहराई से मौजूद है। आने वाले दिनों में यही गूंज नेपाल के भविष्य का रास्ता तय करेगी।

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