सिवनी, संवाददाता। प्रेस एसोसिएशन संगठन, जो पत्रकारों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करता है, एक बार फिर विवादों के भंवर में फंस गया है। आगामी 9 नवंबर 2025 को निर्धारित चुनाव की प्रक्रिया पर अब गंभीर सवाल उठने लगे हैं। सूत्रों और असंतुष्ट सदस्यों के अनुसार, संगठन ने न तो अब तक चुनाव की कोई अधिसूचना जारी की है, न ही किसी निर्वाचन अधिकारी की नियुक्ति की घोषणा की गई है। इससे पूरे चुनाव की पारदर्शिता और वैधता पर संदेह गहराता जा रहा है।
नियमों के मुताबिक, किसी भी संगठनात्मक चुनाव की प्रक्रिया तब शुरू होती है जब चुनाव अधिकारी की नियुक्ति की जाती है। वही अधिकारी सदस्यता सत्यापन, मतदाता सूची तैयार करने, नामांकन पत्र दाखिल करने, दावा-आपत्ति सुनने और अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित करने की जिम्मेदारी निभाता है। लेकिन प्रेस एसोसिएशन के मामले में इन सभी औपचारिकताओं को दरकिनार कर दिया गया है।

बिना प्रक्रिया, मनमाने तरीके से चुनाव की तैयारी
जानकारी के अनुसार, चुनाव से महज दो दिन पहले, यानी 7 नवंबर 2025 तक भी संगठन की ओर से निर्वाचन अधिकारी का नाम और संपर्क विवरण सार्वजनिक नहीं किया गया। इससे यह आशंका और प्रबल हो गई है कि चुनाव पुराने पदाधिकारियों की देखरेख में ही “मनमाने ढंग” से कराया जा रहा है। संगठन के कुछ सदस्यों ने इस पर नाराजगी जताते हुए कहा कि यह चुनाव नहीं, बल्कि पुरानी कमेटी की सत्ता बचाने का खेल है। एक सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, तीन साल से संगठन में पारदर्शिता का अभाव रहा है। वित्तीय गड़बड़ियां, अवैध वसूली और शराबखोरी जैसे आरोपों में संगठन पहले ही बदनाम हो चुका है। अब चुनाव में भी नियमों को ताक पर रख दिया गया है।
नियमों का खुला उल्लंघन
नियम स्पष्ट कहते हैं कि किसी भी चुनाव से पहले, निर्वाचन अधिकारी की नियुक्ति और उसकी सार्वजनिक घोषणा की जानी चाहिए। फिर सदस्यता की जांच-पड़ताल और अंतिम मतदाता सूची जारी की जाती है। नामांकन दाखिल करने, दावा-आपत्ति और नामांकन वापसी की तिथियां तय की जाती है। सभी सदस्यों को चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शी जानकारी दी जाती है। लेकिन प्रेस एसोसिएशन ने इनमें से कोई भी कदम नहीं उठाया है। यही वजह है कि सदस्यों को अब संदेह है कि चुनाव परिणाम पहले से तय हो चुके हैं और पूरा खेल “मुत्सद्दियों के इशारे पर” खेला जा रहा है।
विवादों से रहा है संगठन का पुराना नाता
गौरतलब है कि पिछले तीन वर्षों से संगठन लगातार विवादों में रहा है। कथित रूप से अवैध वसूली, दारू पार्टियों और धन के दुरुपयोग की शिकायतें पहले भी सामने आ चुकी हैं। इन घटनाओं के चलते संगठन की साख पत्रकार समाज में बुरी तरह गिर चुकी है। अब जब चुनाव की प्रक्रिया शुरू हुई है, तो उम्मीद थी कि पारदर्शिता और निष्पक्षता से संगठन अपनी खोई साख वापस पाएगा, लेकिन मौजूदा हालात इस उम्मीद को कमजोर कर रहे हैं।
सदस्यों ने मांगी चुनाव स्थगित करने की मांग
संगठन के कई सदस्यों ने इस पर तत्काल संज्ञान लेने की मांग की है। उन्होंने कहा कि जब तक नियमों के अनुसार चुनाव अधिकारी की नियुक्ति, मतदाता सूची का प्रकाशन और अधिसूचना जारी नहीं होती, तब तक चुनाव को स्थगित किया जाना चाहिए। “यह लोकतंत्र का मजाक है,” एक वरिष्ठ सदस्य ने कहा, जिस संगठन का काम पारदर्शिता पर निगरानी रखना है, वही खुद अंधेरे में खेल खेल रहा है।
चुनाव की वैधता पर खतरा
कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, यदि किसी संगठन के चुनाव में नियमों का पालन नहीं होता, तो उसकी वैधता स्वतः संदिग्ध हो जाती है। चुनाव परिणाम आने के बाद यदि किसी सदस्य ने अदालत में चुनौती दी, तो पूरा चुनाव रद्द भी हो सकता है। प्रेस एसोसिएशन के इस विवादित चुनाव ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि जब “कलम के सिपाही” कहे जाने वाले लोग ही नियम-कायदों की अनदेखी करने लगें, तो लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का क्या होगा? संगठन की विश्वसनीयता पहले ही धूमिल हो चुकी है, और यदि 9 नवंबर को होने वाला चुनाव भी पारदर्शिता से वंचित रहा, तो यह सिवनी के इतिहास में सबसे विवादास्पद चुनाव साबित हो सकता है।

