बालाघाट (राष्ट्रबाण)। प्रदेश में दोनों ही राजनैतिक पार्टिया आदिवासियों का हितैषी होने का दम भरती हैं। लेकिन दोनों ही पार्टियों के नेता आदिवासियों के हित में काम करते नहीं दिखाई दे रहे हैं। नतीजा यह है की भोले भाले आदिवासी लोगो को सरकारी कर्मचारियों की प्रताड़ना की वजह से आत्महत्या करने को मजबूर होना पड़ रहा है। कहने को तो सरकार जल, जंगल और जमीन को आदिवासियों के हक़ होने की बात करती हैं। लेकिन प्रकृति को भगवान मानने वाले आदिवासियों पर जल, जंगल और जमीन के लिए अत्याचार हो रहे है।
ऐसा ही दिल को झकझोर देने वाला मामला आयुष मंत्री रामकिशोर कावरे के गृह जिला और कांग्रेस विधायक हिना कावरे की विधानसभा से सामने आया हैं।
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प्राप्त जानकारी के अनुसार बालाघाट जिले की लांजी तहसील के देवरबेली पुलिस चौकी के अंतर्गत उलटनाले गांव के एक आदिवासी युवक ने वन विभाग के अधिकारियों और वनकर्मियो की प्रताड़ना से तंग आ कर अपनी जीवन लीला ही समाप्त कर ली। मृतक युवक का नाम बिरजू मरावी उम्र 35 वर्ष, ग्राम पंचायत देवरबेली के गांव उलटनाले निवासी बताया गया है। खबर अधिकारियों तक पंहुचते ही बालाघाट कलेक्टर द्वारा मामले में जांच के लिए टीम गठित करने की बात भी सामने आ रही है। ग्रामीणों ने बताया कि लगातार रेंजर और उसके अधीनस्थ कर्मचारियों के द्वारा उन पर जबरन सख्ती की जा रही थी जिससे तंग आकर बिरजू ने आत्मघाती कदम उठाया है। मृतक युवक ने आत्मघाती कदम उठाने के पहले अपना ऑडियो क्लिप भी रिकॉर्ड किया जो कि सामने आया है। बताया जा रहा है कि वन अधिकारी एवं वनकर्मी गरीब आदिवासी से उसका मकान बचाने के नाम पर हजारों रूपयों की मांग और उसके घर पर रात बे रात धमक उसे मुर्गा पार्टी मांगते थे। वन विभाग के अधिकारियो के इस रवैया से आदिवासी युवक परेशान हो गया था। जानकारी के अनुसार बिरजू मरावी ने अपने ही घर पर फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली, लेकिन इसके पहले उसने बकायदा इसके पीछे के कारण का ऑडियो भी बनाया, जिसने वन विभाग के भ्रष्टाचार की पोल खोल दी। यह ऑडिओ वन विभाग के मक्कार अधिकारियों के व्यवहार बताने के लिए काफी है कि वन विभाग के अधिकारी और कर्मचारी किस तरह मिलकर गरीब आदिवासियों को धमकाते है और उनसे रूपए ऐंठते है। उनसे मुर्गा, दारू का जुगाड़ भी करते है।
ग्रामीणों ने जानकारी देते हुए बताया की वन विभाग के अधिकारी एवं कर्मचारियों द्वारा बिरजू के मकान का अतिक्रमण हटाने के प्रकरण दर्ज किया गया था और उसका नोटिस भी उसके मकान पर चस्पा किया गया था। जिसका जुमार्ना लगभग 23 हजार रूपए था, लेकिन मौके पर मौजूद लोगों के बयान के आधार पर यह बात सामने आयी कि वन विभाग के रेंजर और उनके कर्मचारियों द्वारा रात बे रात पंहुचकर बिरजू पर दबाव बनाया जा रहा था। विदित हो कि इस क्षेत्र में अभिषेक जाट बतौर रेंजर पदस्थ है तो वहीं वन विभाग के सिपाही द्वारका प्रसाद मिश्रा का नाम भी सामने आ रहा है। इसके अलावा अन्य सिपाहियों के नाम भी आए है कि इन लोगों के द्वारा बिरजू पर दबाव बनाते हुए रूपयों की मांग की जा रही थी और रूपए नहीं देने पर जेसीबी से उसके मकान को गिराने की धमकी दी गई थी।वन विभाग के अधिकारी और कर्मचारियों की यह गुंडागर्दी से एक आदिवासी युवक ने असमय ही काल को गले लगा लिया, लेकिन ऐसी घटना ने समाज में कई सवाल खड़े कर दिए है। क्या आदिवासी राजनैतिक पार्टियों के लिए सिर्फ वोट बैंक तक सीमित हैं। यह घटना मध्यप्रदेश शासन के आयुष मंत्री रामकिशोर कावरे के गृह जिले बालाघाट, तो कांग्रेस विधायक हिना कावरे की विधानसभा लांजी का हैं। जहां आदिवासियों पर खुलेआम वन विभाग के अफसर अपने दानवीय व्यवहार अत्याचार कर रहे हैं। लेकिन ही दिग्गज नेताओ के द्वारा अपने क्षेत्र के आदिवासी समुदाय की सुध नहीं ली गई। दोनों नेताओ के व्यवहार से प्रतीत होता है की दोनों के बीच राजनैतिक सांठगांठ हैं। तेरी गलती में चुप, मेरी गलती में तू चुप की कहावत को चरितार्थ करते हुए दोनों ही नेता आदिवासियों से अपना हित तो साध रहे हैं। लेकिन वन विभाग के शैतान अफसरों की प्रताड़ना से निजात नहीं दिला पा रहे हैं जिसका जवाब इन नेताओ को आदिवासी समुदाय आगामी विधानसभा में अपने वोट से जरूर देगा।