रतलाम में मौत का गोदाम: वेदव्यास कॉलोनी में कबाड़ी के गोदाम की भीषण आग बेकाबू, 65 से ज़्यादा दमकल झोंकी गईं- प्रशासनिक लापरवाही उजागर

रतलाम शहर के घनी आबादी वाले इलाके वेदव्यास कॉलोनी में अभिलाषा अपार्टमेंट के सामने स्थित लच्छू कबाड़ी के गोदाम में लगी भीषण आग 24 घंटे बाद भी शांत होने का नाम नहीं ले रही। आग की लपटें और उठता धुआं पूरे क्षेत्र को दहशत में डाले हुए है, जबकि दमकल की 65 से अधिक गाड़ियां और चार जेसीबी लगातार आग पर काबू पाने में जुटी हैं। यह हादसा प्रशासनिक लापरवाही और वर्षों से अनदेखी किए गए खतरनाक गोदामों की वास्तविकता को फिर सामने ले आया है।

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    रतलाम, राष्ट्रबाण। रतलाम शहर के प्रमुख रहवासी इलाके वेदव्यास कॉलोनी में स्थित लच्छू कबाड़ी के अवैध एवं खतरनाक गोदाम में गुरुवार देर रात लगी भीषण आग शुक्रवार दोपहर तक भी काबू में नहीं आ सकी थी। आग से उठती तेज़ लपटें और घना धुआं पूरे क्षेत्र पर मौत का साया बनकर मंडरा रहा है। आग की तीव्रता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि अब तक 65 से अधिक दमकल गाड़ियां आग बुझाने में झोंकी जा चुकी हैं, लेकिन हालात अभी भी पूरी तरह नियंत्रण में नहीं हैं।

    अभिलाषा अपार्टमेंट और आसपास के मकानों में रहने वाले लोग रातभर दहशत में रहे। कई परिवार सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट हुए, वहीं कुछ लोग सुबह तक खिड़कियों से धुआं निकालने में लगे रहे। आग इतनी भयावह थी कि क्षेत्र के लोग डर और गुस्से में दिखे।

    बार-बार आग, फिर भी कार्रवाई नहीं!

    स्थानीय लोगों के अनुसार, इस कबाड़ी गोदाम में यह तीसरी–चौथी बार आग लगी है। हर बार छोटी-बड़ी जांच होती है, परंतु न तो गोदाम बंद होता है और न ही मालिक पर कोई कड़ी कार्रवाई होती है। लोगों का आरोप है कि गोदाम संचालक को प्रशासनिक सुरक्षा प्राप्त है, जिसके चलते बार-बार गंभीर हादसे होने के बावजूद कोई कठोर कार्रवाई नहीं की जाती।

    गौरतलब है कि पूर्व कलेक्टर्स द्वारा शहर में स्थित 70 से अधिक खतरनाक गोदामों को नोटिस जारी किए गए थे, जिनमें खाली जगह, सुरक्षा मानकों और शहर के बाहर शिफ्ट किए जाने की शर्तें शामिल थीं। लेकिन इन नोटिसों का हश्र फाइलों में दबकर रह गया। न मॉनिटरिंग हुई, न कार्रवाई और उसका नतीजा आज सामने है।

    गैस सिलेंडरों का बरामद होना बढ़ा सकता था हादसा

    सबसे चिंताजनक पहलू यह रहा कि राहत कार्य के दौरान गोदाम के अंदर से एलपीजी गैस सिलेंडर और गैस कटिंग में उपयोग आने वाले सिलेंडर बरामद हुए। यदि इनमें से एक भी सिलेंडर तेज तापमान में फट जाता, तो धमाका पूरे इलाके को हिला सकता था। अधिकारी मान रहे हैं कि ऐसा होता तो हालात और भी भयावह होते और जनहानि की संभावना बहुत अधिक थी।

    स्थानीय निवासियों का कहना है कि यह गोदाम कबाड़ी के नाम पर कबाड़ ही नहीं, बल्कि कई तरह के ज्वलनशील और खतरनाक सामान का अवैध भंडार बन चुका था। इन्हीं कारणों से आग तेजी से फैलती चली गई।

    चार जेसीबी भी राहत कार्य में शामिल

    दमकल के साथ-साथ चार जेसीबी मशीनों को भी मौके पर लगाया गया है। ये मशीनें जलते हुए कबाड़ को हटाने, लोहे की भारी शिट्स को अलग करने और अंदर फंसे धधकते मटेरियल तक पहुंच बनाने में सहयोग कर रही हैं। परंतु गोदाम में कबाड़ की मात्रा इतनी अधिक है कि जेसीबी भी पूरा मलबा हटाने में सफल नहीं हो पा रही हैं।

    रहवासी इलाकों में चल रहे गैस टंकी गोदाम, भविष्य के “मौत के बंकर”?

    वेदव्यास कॉलोनी के आसपास ही नहीं, बल्कि रतलाम के कई रहवासी इलाकों में छोटे-बड़े गैस टंकी और ज्वलनशील वस्तुओं के गोदाम खुलेआम संचालित हो रहे हैं। इन पर भी मात्र औपचारिकता के तौर पर नोटिस दिए गए, पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। विशेषज्ञ मानते हैं कि ये गोदाम कभी भी बड़े हादसों का कारण बन सकते हैं। लोगों का कहना है कि प्रशासन की अनदेखी और उदासीन रवैया अब शहरवासियों की जान पर बनता जा रहा है। पिछले साल भी समान इलाके में अवैध गैस गोदाम में दुर्घटना हुई थी, लेकिन उसके बाद भी न तो निरीक्षण बढ़ा और न ही लाइसेंस निरस्त किए गए।

    लोग दहशत में क्षेत्र में आक्रोश

    आग से उठ रही लपटें और धुआं अभी भी क्षेत्र के ऊपर मंडरा रहे हैं। स्कूल जाने वाले बच्चों, बुजुर्गों और बीमार लोगों पर इसका सबसे ज्यादा असर दिखाई दे रहा है। कई लोग लगातार फोन करके प्रशासन से पूछ रहे हैं कि आखिर कब ये मौत के गोदाम शहर से हटाए जाएंगे। वहीं कुछ लोगों ने सड़कों पर उतरकर प्रशासन के खिलाफ नाराज़गी भी जताई।

    अभी भी जद्दोजहद जारी

    समाचार लिखे जाने तक दमकलकर्मी और राहत दल आग पर पूरी तरह काबू पाने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं। अफसरों का कहना है कि कबाड़ की प्रकृति के कारण आग बार-बार भड़क रही है, जिससे समय ज़्यादा लग रहा है। लोगों का यही कहना है अगर नोटिसों को गंभीरता से लिया जाता, मॉनिटरिंग होती और अवैध गोदामों को शहर से बाहर किया जाता, तो आज यह दिन नहीं देखना पड़ता।

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