DRDO SAAW Project: भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने अपने स्मार्ट एंटी-एयरफील्ड वेपन (SAAW) को और घातक बनाने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है। यह हथियार अब केवल एक ग्लाइड बम नहीं रहेगा, बल्कि जेट-पावर्ड मिनी क्रूज़ मिसाइल के रूप में विकसित हो रहा है। इस उन्नत संस्करण की मारक क्षमता 200 किलोमीटर से अधिक होगी, जो भारतीय वायुसेना को दुश्मन के ठिकानों पर सुरक्षित दूरी से हमला करने की ताकत देगा। यह आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को मजबूत करने वाला कदम है।
जेट-पावर्ड तकनीक से बढ़ेगी ताकत
नए SAAW में कॉम्पैक्ट टर्बोजेट इंजन और एकीकृत ईंधन टैंक जोड़ा जा रहा है। यह बदलाव हथियार को गुरुत्वाकर्षण आधारित ग्लाइड से हटाकर पूरी उड़ान में स्व-प्रणोदन की क्षमता देगा। मौजूदा SAAW की रेंज 100 किलोमीटर है, लेकिन नया संस्करण 200 किलोमीटर से अधिक दूरी तक निशाना साध सकेगा। इसकी लंबाई 2.5 मीटर होगी, जो पुराने 1.8 मीटर के मॉडल से अधिक है। यह अतिरिक्त आकार इंजन और ईंधन प्रणाली को समायोजित करेगा, फिर भी इसका वायुगतिकीय डिज़ाइन इसे तेज़ और चुस्त बनाए रखेगा।
सटीक निशाना, दिन-रात प्रभावी
इस उन्नत SAAW में इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल (EO) और इमेजिंग इन्फ्रारेड (IIR) सीकर तकनीक का उपयोग होगा। यह ‘फायर-एंड-फॉरगेट’ सुविधा देगा, यानी हथियार लॉन्च होने के बाद खुद लक्ष्य को खोजकर सटीक प्रहार करेगा। IIR सीकर की मदद से यह खराब मौसम, रात के समय और चलते-फिरते लक्ष्यों पर भी प्रभावी होगा। डीआरडीओ ने पहले नाग मिसाइल और अन्य रक्षा प्रणालियों में इस तकनीक का सफल उपयोग किया है। इसकी सटीकता (CEP) तीन मीटर से भी कम होगी, जो इसे विश्वस्तरीय हथियार बनाएगा।
कई विमानों से होगा हमला
नया जेट-पावर्ड SAAW भारतीय वायुसेना के कई विमानों, जैसे सुखोई-30MKI और राफेल, पर एकीकृत होगा। सुखोई-30MKI इस हथियार का मुख्य लॉन्च प्लेटफॉर्म होगा, जो स्वदेशी स्मार्ट क्वाड रैक सिस्टम के जरिए एक साथ कई SAAW ले जा सकता है। इससे दुश्मन के हवाई अड्डों, रनवे, रडार स्टेशनों और अन्य महत्वपूर्ण ठिकानों पर एक साथ बड़े पैमाने पर हमला संभव होगा। 200 किलोमीटर की रेंज इसे ज़्यादातर सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों की पहुंच से बाहर रखेगी, जिससे पायलट और विमान सुरक्षित रहेंगे।
रणनीतिक ताकत और आत्मनिर्भरता
यह उन्नयन भारत की रक्षा तकनीक में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देगा। यह हथियार दुश्मन की वायु शक्ति को शुरुआती चरण में ही निष्क्रिय करने में सक्षम होगा, जो किसी भी युद्ध में निर्णायक हो सकता है। यह विदेशी हथियारों पर निर्भरता को कम करेगा और भारत को उन चुनिंदा देशों में शामिल करेगा, जिनके पास उन्नत एयर-लॉन्च्ड क्रूज़ मिसाइल तकनीक है। डीआरडीओ की यह उपलब्धि भारत को वैश्विक रक्षा तकनीक के क्षेत्र में और मजबूत करेगी।
2025 में परीक्षण की उम्मीद
डीआरडीओ इस नए संस्करण का परीक्षण 2025 के अंत तक कर सकता है। इन परीक्षणों में विभिन्न मौसम, दिन-रात की परिस्थितियों और रेंज की जाँच होगी। सफल परीक्षण के बाद इसका बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू होगा। यह हथियार न केवल भारतीय वायुसेना की ताकत बढ़ाएगा, बल्कि भविष्य में भारतीय नौसेना के विमानवाहक पोतों से भी इस्तेमाल हो सकता है। यह भारत की रक्षा रणनीति में एक नया अध्याय जोड़ेगा।
Read Also: यूपी विधानसभा में ‘विजन 2047’ पर हंगामा, शिवपाल यादव ने योगी सरकार को घेरा