सिवनी, राष्ट्रबाण। त्योहार आते ही पटाखा बाजार गुलजार हो जाता है। प्रशासन सुरक्षा और नियम-कायदे की दुहाई देकर लाइसेंस की प्रक्रिया चलाता है। लेकिन हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। शहर में फटाका लाइसेंस के नाम पर चल रहा बड़ा खेल अब खुलेआम चर्चा का विषय बन गया है।
जानकारी के अनुसार, एक ही परिवार के चार-चार सदस्यों के नाम पर लाइसेंस जारी किए जा रहे हैं। जबकि नियम स्पष्ट है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने नाम पर केवल एक ही लाइसेंस ले सकता है। इस खामोश मिलीभगत के कारण पूरा परिवार “लाइसेंसधारी” बन जाता है और बाद में ये लाइसेंस बाजार में नीलाम कर दिए जाते हैं। सूत्र बताते हैं कि इन लाइसेंसों की नीलामी अवैध तरीके से होती है। शुरुआत तीन हजार रुपये से होती है और बोली दस से पंद्रह हजार रुपये तक पहुंच जाती है। बिचौलियों की मदद से इस तरह लाइसेंस की खरीद-फरोख्त होती है और लाखों रुपये का मुनाफा जेबों में चला जाता है।
बेरोजगारों से ठगी
दूसरी ओर बेरोजगार युवा, जो छोटे व्यापार की उम्मीद से ऑनलाइन आवेदन कर पांच सौ रुपये फीस जमा करते हैं, खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं। लाइसेंस मिलने की उम्मीद पर किए गए आवेदन कचरे की टोकरी में फेंक दिए जाते हैं। इन युवाओं का कहना है कि अगर प्रशासन ईमानदारी से प्रक्रिया चलाता तो उन्हें रोजगार का मौका मिल सकता था। फटाका लाइसेंस का यह गोरखधंधा न केवल प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करता है बल्कि बेरोजगार युवाओं के साथ धोखा भी है। अब सबकी नजरें प्रशासन पर टिकी हैं कि वह अक्षय शोले की शिकायत पर कब और कैसी कार्रवाई करता है। यदि इस बार भी मामला दबा दिया गया तो यह खेल और मजबूत होगा और बेरोजगार युवाओ का विश्वास पूरी तरह टूट जाएगा।
अफरोज और गोलू पंडित के नाम सुर्खियों में
इस अवैध धंधे में अफरोज और गोलू पंडित के नाम सबसे ज्यादा चर्चित हैं। जानकारों का दावा है कि ये दोनों लाइसेंस के बड़े खिलाड़ियों में गिने जाते हैं। इनके माध्यम से ही लाइसेंस की अवैध नीलामी होती है और बिचौलियों का नेटवर्क सक्रिय रहता है।
कलेक्टर की टीम पर उठे सवाल
इस गड़बड़ी को रोकने के लिए कलेक्टर ने एक टीम का गठन भी किया। लेकिन जानकारों का कहना है कि टीम को भी “चढ़ौती” चढ़ाकर मामले को रफा-दफा कर दिया गया। इससे साफ है कि कार्रवाई केवल कागजों में सिमट कर रह गई है।
मठ-मंदिर प्रांगण से वसूली
पटाखा दुकानों की लोकेशन को लेकर भी अवैध लेन-देन का खेल सामने आया है। सूत्रों बताते है कि मठ-मंदिर प्रांगण में दुकान लगाने वालों से दो हजार रुपये तक वसूले जाते हैं। इसमें से 1500 रुपये मठ-मंदिर समिति के पास जाते हैं, जबकि 500 रुपये अधिकारियों और अफसरों की जेब में पहुंचते हैं। इतना ही नहीं, दुकानदारों से कुछ पटाखे जबरन लिए जाने की शिकायतें भी सामने आती हैं।
शिकायत लेकर सामने आए युवा
इस पूरे प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए शहर के एक युवा अक्षय शोले ने सप्रमाण शिकायत प्रशासन से की है। उन्होंने सबूतों के साथ यह गोरखधंधा उजागर किया है। अब देखना होगा कि प्रशासन इस शिकायत को कितनी गंभीरता से लेता है और क्या वाकई दोषियों पर कार्रवाई करता है या फिर यह मामला भी अन्य शिकायतों की तरह दबा दिया जाएगा।
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