कर्नाटक में जाति जनगणना का ऐलान, 22 सितंबर से 7 अक्टूबर तक चलेगा सर्वे, सरकार ने दी मंजूरी

Rahul Maurya

    बेंगलुरु, राष्ट्रबाण: कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार ने एक बड़ा कदम उठाते हुए पूरे राज्य में जाति आधारित जनगणना को मंजूरी दे दी है। ये सर्वे 22 सितंबर से शुरू होकर 7 अक्टूबर तक चलेगा। इसका मकसद राज्य के हर नागरिक की सामाजिक और शैक्षिक स्थिति का सही आकलन करना है।

    सरकार के ताजा आदेश के मुताबिक, कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग को ये जिम्मेदारी सौंपी गई है। आयोग के चेयरमैन ने पहले ही सरकार को पत्र लिखकर इस दौरान सर्वे कराने की इच्छा जाहिर की थी। आदेश में साफ कहा गया है कि प्रस्ताव की पूरी जांच के बाद ही ये फैसला लिया गया। सर्वे के जरिए पिछड़े वर्गों की सच्ची तस्वीर सामने आएगी, जो भविष्य की नीतियों को दिशा देगी।

    लेकिन ये सर्वे अब कोर्ट के रडार पर भी है। कर्नाटक हाईकोर्ट ने शुक्रवार को इसकी वैधता पर सवाल उठाने वाली जनहित याचिकाओं पर सरकार से जवाब तलब किया। जस्टिस अनु शिवरमण और जस्टिस राजेश राय की बेंच ने सोमवार के लिए सुनवाई तय की है। कोर्ट ने कर्नाटक पिछड़ा वर्ग आयोग, भारत के महा-पंजीयक और जनगणना आयुक्त को भी नोटिस जारी कर दिए हैं। ऐसे में सर्वे की शुरुआत पर कोई असर पड़ेगा या नहीं, ये देखना दिलचस्प होगा।

    BJP की कड़ी आपत्ति

    राजनीतिक हलचल भी तेज हो गई है। बीजेपी के कर्नाटक अध्यक्ष बीवाई विजयेंद्र ने इसे हिंदू समाज को बांटने की साजिश बताया। उन्होंने लोगों से अपील की कि सर्वे के दौरान धर्म के कॉलम में सिर्फ ‘हिंदू’ ही लिखवाएं। विजयेंद्र ने कहा, “हमारे पार्टी के चिंतन शिविर में ये संकल्प लिया गया था कि जाति सर्वे में कोई भी समुदाय धर्म के नाम में सिर्फ हिंदू ही दर्ज कराए।” दूसरी तरफ, वीरशैव-लिंगायत महासभा ने अपने लोगों से कहा है कि वे धर्म कॉलम में ‘वीरशैव-लिंगायत’ लिखें। ये मतभेद राज्य की राजनीति को और गर्म कर सकते हैं।

    सर्वे की अनुमानित लागत करीब 420 करोड़ रुपये बताई जा रही है। अगर सब कुछ प्लान के मुताबिक चला, तो ये कर्नाटक के लिए एक ऐतिहासिक कदम साबित होगा। पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण और कल्याण योजनाओं में ये आंकड़े अहम भूमिका निभाएंगे। लेकिन कोर्ट की सुनवाई और राजनीतिक बवाल के बीच सरकार को सतर्क रहना पड़ेगा। क्या ये सर्वे बिना रुकावट पूरा होगा? आने वाले दिनों में साफ हो जाएगा।

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