मालेगांव ब्लास्ट: साध्वी प्रज्ञा समेत सभी बरी, पीड़ित पक्ष ने कहा, ‘हमें न्याय नहीं मिलाकरीब 17 साल पहले, 29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव में हुए बम विस्फोट में छह लोगों की मौत और 95 से अधिक लोग घायल हुए थे। इस मामले में सात अभियुक्तों, जिनमें पूर्व बीजेपी सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित शामिल थे, को विशेष एनआईए कोर्ट ने 31 जुलाई 2025 को बरी कर दिया। विशेष न्यायाधीश एके लाहोटी ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष बम विस्फोट को साबित करने में तो सफल रहा, लेकिन यह स्थापित करने में विफल रहा कि विस्फोटक मोटरसाइकिल पर लगाया गया था। सबूतों की कमी और जाँच में खामियों के कारण सभी अभियुक्तों को संदेह का लाभ दिया गया।
कोर्ट ने क्या कहा?
विशेष न्यायाधीश एके लाहोटी ने अपने फैसले में कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि अभियोजन पक्ष ने यह साबित नहीं किया कि जिस मोटरसाइकिल (LML फ्रीडम, MH 15 P 4572) का इस्तेमाल विस्फोट में हुआ, वह साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर की थी। फोरेंसिक जाँच में मोटरसाइकिल के चेसिस नंबर पूरी तरह बरामद नहीं हुए, और प्रज्ञा ने 2006 में सन्यास ले लिया था, जिसके बाद उनके पास कोई भौतिक संपत्ति नहीं थी। कोर्ट ने यह भी पाया कि लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित पर कश्मीर से RDX लाने और उसे अपने घर पर रखने या बम बनाने का आरोप था, लेकिन इसके लिए कोई ठोस सबूत नहीं मिला।
अदालत ने अभिनव भारत संगठन के तहत साजिश रचने की बात को भी खारिज किया, क्योंकि इंदौर, उज्जैन, या नासिक में कथित बैठकों का कोई विश्वसनीय प्रमाण नहीं था। जाँच में फोन रिकॉर्ड की अनधिकृत निगरानी और गैरकानूनी गतिविधियाँ रोकथाम अधिनियम (UAPA) के तहत अनुमोदन में खामियाँ पाई गईं। कोर्ट ने माना कि पुरोहित, अजय राहिरकर, और रमेश उपाध्याय के बीच कुछ वित्तीय लेनदेन के सबूत थे, लेकिन यह साबित नहीं हुआ कि धन का उपयोग आतंकी गतिविधियों के लिए हुआ।
न्यायाधीश लाहोटी ने कहा, “आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, क्योंकि कोई भी धर्म हिंसा का समर्थन नहीं करता। फैसले नैतिकता या जन धारणा पर आधारित नहीं हो सकते।” उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि अभियोजन पक्ष के 323 गवाहों में से 37 अपने बयान से मुकर गए, और 10,800 से अधिक दस्तावेज़ों के बावजूद, विश्वसनीय और ठोस सबूतों की कमी रही। कोर्ट ने छह मृतकों के परिजनों को 2 लाख रुपये और 95 घायलों को 50,000 रुपये मुआवजे का आदेश दिया, यह कहते हुए कि कुछ मेडिकल सर्टिफिकेट में हेरफेर पाया गया।
पीड़ित पक्ष की प्रतिक्रिया
मालेगांव विस्फोट में अपनी 10 साल की बेटी को खोने वाले लियाकत शेख ने फैसले पर निराशा जताई। उन्होंने कहा, “हमारे साथ अन्याय हुआ। हेमंत करकरे ने सबूतों के साथ अभियुक्तों को पकड़ा था। अगर उन्होंने यह नहीं किया, तो किसने किया? अब हम सुप्रीम कोर्ट जाएँगे।
मेरी बेटी वड़ा पाव लेने गई थी, और धमाका हो गया।” स्थानीय नेता मौलाना कयूम ने भी कहा कि मालेगांव के लोग उम्मीद कर रहे थे कि दोषियों को सजा मिलेगी, लेकिन अब वे हाई कोर्ट में अपील करेंगे। पीड़ितों के वकील शाहिद नदीम ने कहा, “17 साल बाद यह फैसला निराशाजनक है। पीड़ितों ने अपनी चोटें दिखाने के लिए 300 किमी की यात्रा की, लेकिन जाँच एजेंसियों और सरकार की नाकामी की सजा उन्हें मिली।”
मुख्यमंत्री की प्रतिक्रिया
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने फैसले का स्वागत किया और कहा, “आतंकवाद भगवा न कभी था, न है, न कभी रहेगा।” उन्होंने इस फैसले को उन दावों का खंडन बताया, जो हिंदू समुदाय को बदनाम करने की कोशिश करते थे।
एटीएस और एनआईए जाँच में अंतर
महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधक दस्ता (एटीएस) ने शुरुआती जाँच में दावा किया था कि विस्फोट में साध्वी प्रज्ञा की मोटरसाइकिल का इस्तेमाल हुआ, जिसे अभिनव भारत संगठन के सदस्यों ने कथित तौर पर आतंकी साजिश के तहत इस्तेमाल किया। एटीएस ने हेमंत करकरे के नेतृत्व में प्रज्ञा, पुरोहित, और अन्य को गिरफ्तार किया, और मकोका (MCOCA) के तहत चार्जशीट दाखिल की।
2011 में जाँच एनआईए को सौंपे जाने के बाद, एनआईए ने मकोका हटा दिया और प्रज्ञा को दोषमुक्त करने की सिफारिश की, यह कहते हुए कि मोटरसाइकिल 2006 से रामजी कलसंग्रा के पास थी। एनआईए ने 2016 में अपनी चार्जशीट में 10 अभियुक्तों का नाम लिया, लेकिन जाँच में कई खामियाँ पाई गईं, जैसे समय बीतने के कारण फोरेंसिक सबूतों की कमी और गवाहों के बयानों में विरोधाभास।
मामला और इसकी पृष्ठभूमि
29 सितंबर 2008 को मालेगांव के भीकू चौक के पास, रमज़ान के दौरान, रात 9:35 बजे एक मोटरसाइकिल पर रखे गए विस्फोटक से धमाका हुआ। यह मालेगांव में दो साल में दूसरा हमला था, क्योंकि 2006 में शब-ए-बरात के दिन चार धमाकों में 31 लोग मारे गए थे। 2008 के मामले में अभिनव भारत संगठन पर साजिश का आरोप लगा, और प्रज्ञा ठाकुर, पुरोहित, रमेश उपाध्याय, अजय राहिरकर, सुधाकर द्विवेदी, सुधाकर चतुर्वेदी, और समीर कुलकर्णी पर UAPA और IPC के तहत मुकदमा चला। सात साल के मुकदमे में पाँच जजों ने सुनवाई की, और 40 गवाह अपने बयानों से मुकर गए।
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