मंडला, राष्ट्रबाण। मध्य प्रदेश के मंडला जिले के एकीकृत माध्यमिक शाला देवगांव में शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह अस्त-व्यस्त होती दिखाई दे रही है। तीन शिक्षकों के स्थानांतरण के बाद स्कूल में पढ़ाई लगभग ठप है, लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि सहायक आयुक्त जनजाति कार्य विभाग मंडला के आदेशों के बावजूद अब तक अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति नहीं की गई है। प्रधान अध्यापिका की इस मनमानी से न सिर्फ ग्रामीण क्रोधित हैं, बल्कि बच्चों का भविष्य भी सवालों के घेरे में है।
14 दिन से रिक्त पद, पर नियुक्ति का नाम नहीं!
ग्रामीणों के अनुसार, विभागीय लापरवाही के चलते पहले से ही शिक्षकों की कमी थी, ऊपर से तीन शिक्षकों को हटाए जाने के बाद स्थिति और खराब हो गई। नियमों के अनुसार विषयवार अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति तत्काल की जानी चाहिए थी, लेकिन देवगांव माध्यमिक शाला की प्रधान अध्यापिका श्याम सुशीला ने 14 दिनों बाद भी कोई विज्ञापन जारी नहीं किया।
ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने कई बार स्कूल पहुँचकर प्रधान अध्यापिका से निवेदन किया कि विषयवार शिक्षकों की व्यवस्था की जाए, ताकि बच्चों की पढ़ाई बाधित न हो। लेकिन हर बार एक ही जवाब मिला जब तक मेरे वरिष्ठ अधिकारी आदेश नहीं देंगे, तब तक हम अतिथि शिक्षक नहीं रख सकते।
अधिकारियों ने दिया था स्पष्ट निर्देश, फिर भी नहीं उठाया कदम
सबसे बड़ा सवाल यही है कि जब विकासखंड शिक्षा अधिकारी (BEO) के द्वारा स्वयं फोन कर निर्देश दिए गए थे कि तत्काल अतिथि शिक्षकों की भर्ती हेतु विज्ञापन जारी किया जाए, तो प्रधान अध्यापिका ने उन निर्देशों की अवहेलना क्यों की? विकासखंड शिक्षा अधिकारी मोहगांव, ए.के. जैन, ने राष्ट्रबाण से चर्चा में साफ कहा कि “प्रधान अध्यापिका को स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि जहां शिक्षक का ट्रांसफर हो चुका है और शिक्षकों की कमी है, वहाँ तत्काल विज्ञापन जारी कर अतिथि शिक्षक नियुक्त किए जाएं, ताकि शैक्षणिक व्यवस्था प्रभावित न हो। इसके बावजूद प्रधान अध्यापिका द्वारा कार्रवाई न करना उनके इरादों पर गंभीर सवाल खड़े करता है। यह स्थिति दर्शाती है कि प्रधान अध्यापिका को स्कूल की वास्तविक आवश्यकता और बच्चों के भविष्य की कोई चिंता नहीं है।
संकुल प्राचार्य भी हुए हैरान
सिंगारपुर संकुल प्राचार्य जय बैरागी ने भी इस मामले में कड़ा रुख दिखाते हुए कहा प्रधान अध्यापिका विज्ञापन क्यों नहीं जारी कर रही हैं, यह समझ से परे है। विज्ञापन जारी करना SMD और प्रधान अध्यापिका की जिम्मेदारी होती है। यदि उन्होंने जानबूझकर विज्ञापन रोक रखा है, तो यह स्पष्ट लापरवाही है। मामले की जांच होगी और दोषी पर कार्रवाई तय है।

