प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी छह साल बाद चीन की यात्रा पर जा सकते हैं। 31 अगस्त से 1 सितंबर तक शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) की समिट चीन में होने वाली है, और खबर है कि पीएम मोदी इसमें हिस्सा ले सकते हैं। 2020 में गलवान घाटी में भारत-चीन सैनिकों के बीच हिंसक झड़प के बाद दोनों देशों के रिश्तों में तनाव आ गया था। ऐसे में यह दौरा न केवल SCO की औपचारिकता है, बल्कि भारत की स्वतंत्र विदेश नीति का मजबूत संदेश भी देता है। इस दौरान पीएम मोदी के जापान दौरे की भी संभावना है।
भारत की बैलेंस्ड विदेश नीति
भारत इस समय वैश्विक मंच पर संतुलित रुख अपनाए हुए है। एक तरफ अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी को मजबूत किया जा रहा है, तो दूसरी तरफ रूस और चीन जैसे देशों के साथ भी बातचीत जारी है। हाल ही में भारत और अमेरिका के बीच टैरिफ को लेकर तनाव बढ़ा है, जबकि अमेरिका और चीन के रिश्तों में भी खटास बनी हुई है। ऐसे में पीएम मोदी का संभावित चीन दौरा अमेरिका के लिए अप्रत्याशित हो सकता है। यह दर्शाता है कि भारत किसी एक खेमे का हिस्सा बनने के बजाय अपनी नीतियां खुद तय कर रहा है।
रूस के साथ भी गहरे रिश्ते
जब पीएम मोदी के चीन दौरे की चर्चा शुरू हुई, उसी समय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल रूस में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात कर रहे थे। यह मुलाकात भारत-रूस के बीच गहरे भरोसे को दर्शाती है। जल्द ही विदेश मंत्री एस जयशंकर भी मास्को का दौरा करने वाले हैं। यह दिखाता है कि भारत रूस के साथ अपनी पुरानी दोस्ती को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है, भले ही पश्चिमी देश इसका विरोध करें।
वैश्विक मंच पर भारत का जवाब
भारत का यह रुख साफ है कि वह न तो किसी देश का पिछलग्गू बनेगा और न ही किसी खेमे में शामिल होगा। रूस से तेल खरीदने, ईरान से रिश्तों, या चीन के साथ मंच साझा करने पर पश्चिमी देशों के सवालों का जवाब भारत अपनी स्वतंत्र नीतियों से दे रहा है। पीएम मोदी का संभावित चीन दौरा और रूस के साथ गहरी साझेदारी वैश्विक मंच पर भारत की बढ़ती ताकत को रेखांकित करती है।
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