MP News : पुलिया निर्माण शुरू होने से पहले ही राशि लैप्स, पंचायत से छीना काम

बैतूल जिले की ग्राम पंचायत बाजपुर में पुलिया निर्माण कार्य शुरू होने से पहले ही बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। आठ लाख रुपये की मंजूरी और 2 लाख 40 हजार की पहली किश्त जारी होने के बावजूद अचानक गुणवत्ता पर सवाल उठाकर राशि वापस मंगवा ली गई और काम पंचायत से छीनकर ग्रामीण यांत्रिकी विभाग को सौंप दिया गया। इस फैसले से पंचायत प्रतिनिधियों और ग्रामीणों में गहरा आक्रोश है, जो इसे कमीशनबाजी और राजनीतिक दबाव से जोड़कर देख रहे हैं।

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  • गुणवत्ता पर सवाल, कमीशनबाजी और राजनीतिक दबाव की गूंज; ग्रामीणों का आक्रोश फूटा

    बैतूल, राष्ट्रबाण। ग्राम पंचायत बाजपुर में प्रस्तावित पुलिया निर्माण कार्य को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। आठ लाख रुपये की प्रशासकीय स्वीकृति के बाद 30 प्रतिशत यानी 2 लाख 40 हजार रुपये की पहली किश्त पंचायत को दी गई थी, लेकिन निर्माण कार्य शुरू होने से पहले ही अचानक गुणवत्ता पर सवाल उठाकर राशि वापस मंगवा ली गई। अब निर्माण एजेंसी बदलकर ग्रामीण यांत्रिकी विभाग को जिम्मेदारी सौंप दी गई है। इस फैसले ने पंचायत प्रतिनिधियों और ग्रामीणों में गहरी नाराजगी पैदा कर दी है।

    स्वीकृति के बाद भी पंचायत से छीनी जिम्मेदारी

    जिला खनिज कार्यालय बैतूल ने 6 फरवरी 2025 को आदेश जारी कर संजु के खेत के पास पुलिया निर्माण की मंजूरी दी थी। कार्य पंचायत स्तर से कराने का निर्णय हुआ और पहली किश्त की राशि पंचायत को भेज दी गई। लेकिन अचानक जनपद पंचायत अध्यक्ष के कथन के आधार पर यह तर्क दिया गया कि ग्राम पंचायत गुणवत्ता वाला काम नहीं कर सकती। इसके बाद निर्माण एजेंसी बदलकर ग्रामीण यांत्रिकी सेवा संभाग बैतूल को जिम्मेदारी सौंप दी गई। साथ ही पंचायत को तीन दिन में जारी राशि लौटाने का आदेश भी जारी कर दिया गया।

    शुरुआत से पहले ही गुणवत्ता पर सवाल कैसे?

    इस फैसले पर उपसरपंच राकेश गंगारे और पंचायत प्रतिनिधियों ने कड़ा विरोध जताया। उनका कहना है कि जब निर्माण कार्य शुरू ही नहीं हुआ, तो गुणवत्ता को लेकर शंका कैसे जताई जा सकती है। यह पंचायत को बदनाम करने और किसी सुनियोजित कमीशनबाजी की साजिश लगता है। गंगारे ने सवाल उठाया कि अगर पंचायतों को काम ही नहीं करने देना है, तो पहले स्वीकृति और राशि क्यों जारी की गई?

    जनपद अध्यक्ष की भूमिका संदिग्ध

    ग्रामवासियों का गुस्सा खासकर जनपद पंचायत अध्यक्ष की भूमिका को लेकर है। पत्र में उन्हीं की आपत्ति का हवाला दिया गया है, जबकि उपसरपंच राकेश गंगारे का कहना है कि जब उन्होंने सीधे उनसे कारण पूछा तो उन्होंने कहा– “मुझे जानकारी नहीं है।” इससे स्थिति और भी संदेहास्पद हो गई। ग्रामीणों का कहना है कि या तो अध्यक्ष को बिना पूछे उनके नाम से आपत्ति दर्ज की गई है, या फिर वे खुद साफ जवाब देने से बच रहे हैं।

    ग्रामीणों में गहराता अविश्वास

    ग्रामीणों का कहना है कि यह पूरा घटनाक्रम पंचायत प्रणाली को कमजोर करने और राजनीतिक दबाव बनाने का उदाहरण है। पहले मंजूरी, फिर राशि जारी करना और बाद में अचानक एजेंसी बदल देना– यह सब किसी षड्यंत्र की बू देता है। लोगों का मानना है कि यदि पंचायतों को निर्माण कार्य का मौका ही नहीं देना है, तो फिर उन्हें एजेंसी बनाकर खानापूर्ति क्यों की जाती है।

    मामला गरमाने के आसार

    बाजपुर पंचायत में पुलिया निर्माण को लेकर पैदा हुआ विवाद अब पूरे क्षेत्र में चर्चा का विषय बन गया है। पंचायत प्रतिनिधियों और ग्रामीणों ने इस मामले में पारदर्शिता की मांग करते हुए इसे राजनीतिक दबाव और कमीशनखोरी से जोड़कर देखा है। अब देखना होगा कि जिला प्रशासन इस विवाद पर क्या रुख अपनाता है, क्योंकि फिलहाल ग्रामीणों का गुस्सा थमने का नाम नहीं ले रहा।

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