नई दिल्ली, 13 अगस्त 2025: सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन संशोधन (SIR) को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया कि निर्वाचन आयोग (EC) का दस्तावेज सत्यापन अभियान मतदाताओं के खिलाफ नहीं, बल्कि उनके हित में है। जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस जोयमाल्या बागची की पीठ ने याचिकाकर्ता के दावे को खारिज कर दिया कि यह कवायद मतदाताओं को सूची से हटाने की साजिश है। कोर्ट ने EC को चार हफ्तों में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया।
दस्तावेजों की संख्या पर बहस
सुनवाई में वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने तर्क दिया कि आधार कार्ड को स्वीकार न करना और 11 दस्तावेजों की माँग ग्रामीण और गरीब मतदाताओं के लिए बहिष्करणकारी है। उन्होंने कहा कि बिहार में पासपोर्ट जैसे दस्तावेज केवल 2% लोगों के पास हैं। जवाब में, जस्टिस बागची ने कहा कि 11 दस्तावेजों की सूची पहले की 7 दस्तावेजों की तुलना में अधिक समावेशी है। उन्होंने कहा, “मतदाता को केवल एक दस्तावेज देना है, जो उनके लिए सुविधाजनक है।” जस्टिस सूर्य कांत ने जोड़ा, “11 दस्तावेज माँगना मतदाता-विरोधी कैसे हो सकता है, अगर एक दस्तावेज ही काफी है?” कोर्ट ने बिहार के 36 लाख पासपोर्ट धारकों को पर्याप्त कवरेज माना।
EC का आश्वासन
निर्वाचन आयोग ने कोर्ट में बताया कि बिहार के 7.9 करोड़ मतदाताओं में से 6.5 करोड़ को नया दस्तावेज देने की जरूरत नहीं, क्योंकि उनके नाम 2003 की मतदाता सूची में दर्ज हैं। EC ने आश्वासन दिया कि कोई भी नाम बिना नोटिस, सुनवाई और लिखित आदेश के नहीं हटाया जाएगा। कोर्ट ने इसे “विश्वास की कमी” का मामला बताया और कहा कि अगर SIR में कोई गलती पाई गई, तो परिणाम सितंबर तक रद्द किए जा सकते हैं।
SIR का पृष्ठभूमि और सियासी विवाद
EC ने 24 जून 2025 को बिहार में SIR शुरू किया था ताकि डुप्लिकेट, मृत, या स्थानांतरित मतदाताओं के नाम हटाए जा सकें। 1 अगस्त को प्रकाशित ड्राफ्ट मतदाता सूची में 35.5 लाख नाम हटाए गए, जिसके बाद विपक्षी दलों ने इसे गरीब, दलित और अल्पसंख्यक मतदाताओं को निशाना बनाने का आरोप लगाया। न्यूज़18 और इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट्स के अनुसार, EC ने दावा किया कि SIR से मतदाता सूची की शुद्धता बढ़ेगी। कोर्ट का यह फैसला बिहार के आगामी विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची की विश्वसनीयता पर बहस को और तेज कर सकता है।
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