सॉइल हेल्थ कार्ड योजना: 25 करोड़ से अधिक किसानों को लाभ, मृदा प्रबंधन को बढ़ावा

Rahul Maurya

नई दिल्ली, राष्ट्रबाण: देश में किसानों को मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने और टिकाऊ खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने सॉइल हेल्थ कार्ड योजना के तहत जुलाई 2025 तक 25 करोड़ से ज्यादा सॉइल हेल्थ कार्ड बाँटे हैं। इस योजना को और मजबूत करने के लिए केंद्र ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को अब तक 1,706.18 करोड़ रुपये की सहायता दी है। यह योजना किसानों को उनकी मिट्टी की स्थिति समझने और सही उर्वरकों का उपयोग करने में मदद कर रही है।

सॉइल हेल्थ कार्ड का महत्व

2015 में अंतरराष्ट्रीय मृदा वर्ष के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजस्थान के सूरतगढ़ में सॉइल हेल्थ कार्ड योजना की शुरुआत की थी। यह योजना प्रत्येक खेत की मिट्टी की पोषक स्थिति का आकलन करती है और किसानों को एक प्रिंटेड रिपोर्ट देती है। यह कार्ड मिट्टी के 12 प्रमुख मापदंडों पर नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटेशियम, और सल्फर—का विश्लेषण करता है। इसके आधार पर किसानों को उर्वरकों, जैव-उर्वरकों, और मृदा उपचार की सही मात्रा का सुझाव दिया जाता है। हर दो साल में मिट्टी की जाँच कर नया मार्गदर्शन प्रदान किया जाता है।

बड़े पैमाने पर सॉइल मैपिंग

भारतीय मृदा एवं भूमि उपयोग सर्वेक्षण ने 40 आकांक्षी जिलों सहित 290 लाख हेक्टेयर भूमि की 1:10,000 के पैमाने पर सॉइल मैपिंग पूरी की है। इसके अलावा, 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 1,987 गाँव-स्तरीय सॉइल फर्टिलिटी मैप्स तैयार किए गए हैं। ये मैप्स किसानों को उनकी मिट्टी के लिए सही फसल और उर्वरक चुनने में मदद करते हैं, जिससे उत्पादकता बढ़ती है और मिट्टी की सेहत बनी रहती है।

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना का हिस्सा

2022-23 से सॉइल हेल्थ कार्ड योजना को राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत ‘मृदा स्वास्थ्य और उर्वरता’ के रूप में शामिल किया गया है। यह योजना किसानों को टिकाऊ खेती की दिशा में प्रेरित करती है और मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने के लिए जैविक और रासायनिक उर्वरकों के संतुलित उपयोग को बढ़ावा देती है। सरकार का लक्ष्य है कि हर किसान को अपनी मिट्टी की पूरी जानकारी हो, ताकि वे बेहतर फसल उत्पादन कर सकें।

किसानों को मिल रही राहत

यह योजना न केवल मिट्टी की सेहत सुधारने में मदद कर रही है, बल्कि किसानों को आर्थिक रूप से भी फायदा पहुँचा रही है। सही उर्वरकों का उपयोग करके किसान लागत कम कर सकते हैं और फसल की गुणवत्ता बढ़ा सकते हैं। योजना के तहत दी गई वित्तीय सहायता ने राज्यों को मृदा परीक्षण प्रयोगशालाएँ स्थापित करने और किसानों तक जागरूकता पहुँचाने में मदद की है।

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