पटना, राष्ट्रबाण, सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में 65 लाख वोटरों की सूची से नाम हटाने के मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने चुनाव आयोग को आदेश दिया कि वह मंगलवार तक ड्राफ्ट मतदाता सूची से हटाए गए 65 लाख लोगों के नाम जिला स्तर पर जारी करे और प्रत्येक नाम के साथ हटाने का कारण स्पष्ट करे। जस्टिस सूर्यकांत, उज्जल भुयान, और एन.के. सिंह की बेंच ने यह भी निर्देश दिया कि यह सूची प्रखंड और पंचायत कार्यालयों पर प्रदर्शित की जाए, साथ ही अखबारों और टीवी चैनलों के माध्यम से इसका व्यापक प्रचार किया जाए।
कोर्ट ने कहा कि सूची ऐसी होनी चाहिए, जिसमें मतदाता आसानी से अपना नाम खोज सकें। यह आदेश एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की याचिका पर आया, जिसमें वोटर लिस्ट संशोधन में पारदर्शिता की कमी का आरोप लगाया गया था। इस फैसले ने बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले सियासी हलचल तेज कर दी है।
वोटर लिस्ट विवाद
बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले 1 अगस्त 2025 को विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के बाद चुनाव आयोग ने ड्राफ्ट वोटर लिस्ट जारी की थी, जिसमें 65 लाख लोगों के नाम हटाए गए। ADR ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दावा किया कि आयोग ने इन नामों और हटाने के कारणों को सार्वजनिक नहीं किया, जिससे पारदर्शिता पर सवाल उठे।
याचिकाकर्ता की ओर से वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि आयोग ने मृत्यु, पलायन, या डुप्लिकेट नामों का हवाला दिया, लेकिन हटाए गए लोगों की पहचान और कारण स्पष्ट नहीं किए। भूषण ने यह भी बताया कि कई मामलों में बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) ने नाम हटाने की सिफारिश नहीं की थी। कोर्ट ने आयोग से पूछा कि क्या हटाए गए वोटरों की सूची राजनीतिक दलों को दी गई और क्या प्रक्रिया का पालन हुआ।
चुनाव आयोग की सफाई
चुनाव आयोग ने दावा किया कि ड्राफ्ट सूची प्रकाशित की गई थी और हटाए गए नामों की जानकारी कुछ राजनीतिक दलों को दी गई थी। हालांकि, कोर्ट ने आयोग की इस सफाई पर असंतोष जताया और पूछा कि कारणों सहित पूरी सूची क्यों नहीं दी गई।
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि प्रभावित मतदाताओं को अपने नाम हटने की जानकारी और गलती सुधारने का मौका मिलना चाहिए। कोर्ट ने आयोग को शनिवार तक जवाब दाखिल करने और 12 अगस्त को अगली सुनवाई में स्थिति स्पष्ट करने को कहा।
बिहार चुनाव पर प्रभाव
यह फैसला बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए अहम है, क्योंकि वोटर लिस्ट में पारदर्शिता मतदाता विश्वास और चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता के लिए जरूरी है। रक्षा विशेषज्ञों और राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 65 लाख नाम हटने से कई निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाता समीकरण बदल सकते हैं।
आयोग ने बताया कि 22 लाख वोटरों की मृत्यु, 35 लाख का पलायन, और 7 लाख डुप्लिकेट पंजीकरण के कारण नाम हटाए गए। हालांकि, बिना स्पष्ट जानकारी के ये आंकड़े विवाद का कारण बने हैं। विपक्षी दलों ने इसे चुनावी प्रक्रिया में हेरफेर का आरोप लगाया है। कोर्ट का यह आदेश न केवल आयोग की कार्यप्रणाली को पारदर्शी बनाएगा, बल्कि मतदाताओं के अधिकारों की रक्षा भी करेगा।
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