सुप्रीम कोर्ट की फटकार.. पेड़ों की अवैध कटाई से आई बाढ़-भूस्खलन की आपदा, केंद्र और राज्यों को नोटिस

Rahul Maurya

नई दिल्ली, राष्ट्रबाण: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर भारत के पहाड़ी राज्यों में बार-बार हो रही बाढ़ और भूस्खलन की घटनाओं पर सख्त रुख अपनाया है। कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, और जम्मू-कश्मीर में पेड़ों की अवैध कटाई को इन आपदाओं का बड़ा कारण बताया। दिल्ली, पंजाब, और उत्तर प्रदेश में भी बाढ़ की घटनाओं पर चिंता जताते हुए कोर्ट ने केंद्र सरकार, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए), और संबंधित राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई दो सप्ताह बाद तय की है और सॉलिसिटर जनरल से ठोस सुधारात्मक कदम उठाने को कहा है।

पेड़ों की कटाई बनी मुसीबत

सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, और जम्मू-कश्मीर जैसे पहाड़ी राज्यों में जंगलों की अवैध कटाई ने पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाया है। जजों ने टिप्पणी की, “पेड़ों का बेतहाशा कटाव मिट्टी के कटाव और भूस्खलन का कारण बन रहा है, जिससे बाढ़ की घटनाएँ बढ़ी हैं।” विशेषज्ञों का कहना है कि जंगल मिट्टी को बांधे रखते हैं और बारिश का पानी रोकने में मदद करते हैं। लेकिन अवैध कटाई और अनियोजित निर्माण ने पहाड़ों को कमजोर कर दिया है, जिससे हर मानसून में तबाही मच रही है।

हिमाचल के शिमला और उत्तराखंड के चमोली जैसे इलाकों में हाल के वर्षों में भूस्खलन और बाढ़ ने सैकड़ों लोगों की जान ली है। सड़कें, पुल, और घर बह गए हैं, जिससे स्थानीय लोगों का जीवन मुश्किल हो गया है। कोर्ट ने कहा कि इन आपदाओं को रोकने के लिए तुरंत कदम उठाने की जरूरत है।

केंद्र और राज्यों से जवाब तलब

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और एनडीएमए से पूछा है कि अवैध कटाई रोकने और आपदा प्रबंधन के लिए क्या कदम उठाए गए हैं। कोर्ट ने यह भी सवाल किया कि पहाड़ी क्षेत्रों में अनियोजित विकास को नियंत्रित करने के लिए क्या नीतियाँ लागू हैं। उत्तराखंड और हिमाचल में पर्यटन और बुनियादी ढांचे के नाम पर हो रहे निर्माण पर भी कोर्ट ने चिंता जताई। सॉलिसिटर जनरल को दो सप्ताह में जवाब दाखिल करने और ठोस उपाय सुझाने को कहा गया है।

पर्यावरणविदों ने जताई चिंता

पर्यावरण विशेषज्ञों ने सुप्रीम कोर्ट के रुख का स्वागत किया है। देहरादून के पर्यावरण कार्यकर्ता अनिल जोशी ने कहा, “पेड़ों की कटाई और अनियोजित निर्माण पहाड़ों को खोखला कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट का यह कदम समय की मांग है।” उन्होंने मांग की कि अवैध कटाई पर सख्त सजा और जंगल संरक्षण के लिए बड़े पैमाने पर पौधारोपण शुरू किया जाए।

शिमला के एक स्थानीय निवासी रमेश ठाकुर ने बताया, “हर साल बाढ़ और भूस्खलन से हमारा कारोबार और घर तबाह हो रहे हैं। सरकार को जंगल बचाने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए।”

आपदा प्रबंधन पर सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने एनडीएमए की तैयारियों पर भी सवाल उठाए। कोर्ट ने पूछा कि बार-बार होने वाली आपदाओं के बावजूद राहत और बचाव कार्यों में देरी क्यों हो रही है। उत्तराखंड में 2023 की बाढ़ और हिमाचल में 2024 के भूस्खलन के दौरान राहत कार्यों में कमी की खबरें सामने आई थीं। कोर्ट ने केंद्र और राज्यों से आपदा प्रबंधन की रणनीति को मजबूत करने को कहा है।

सुप्रीम कोर्ट का यह कदम पहाड़ी राज्यों में पर्यावरण संरक्षण और आपदा प्रबंधन के लिए एक नई शुरुआत हो सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि अवैध कटाई पर रोक, सख्त निगरानी, और टिकाऊ विकास नीतियों से इन आपदाओं को कम किया जा सकता है।

स्थानीय लोग भी सरकार से उम्मीद कर रहे हैं कि जंगल बचाने और बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए ठोस कदम उठाए जाएँ। दो सप्ताह बाद होने वाली सुनवाई में कोर्ट के फैसले पर सबकी नजरें टिकी हैं। क्या यह कदम पहाड़ों को बचा पाएगा? यह तो वक्त ही बताएगा।

Read also: प्राइवेट कर्मचारियों के लिए नया नियम, अब 9 की जगह 10 घंटे करना होगा काम, निवेश बढ़ाने का मकसद

error: Content is protected !!