पैसो का खेल : शिक्षा विभाग में बैठे अफसरों को चाहिए पैसा, पैसा नहीं तो साइन नहीं

Rashtrabaan

सिवनी, राष्ट्रबाण। वैसे तो शिक्षा विभाग देश की उन्नति का अहम् पहिया है, जिस देश की शिक्षा व्यवस्था सही होती है उस देश की तरक्की कोई नहीं रोक सकता। लेकिन भारत देश में शिक्षा विभाग में बैठे भ्रष्ट अफसरों ने शिक्षा के माथे पर कलंक लगा दिया है। यहां अधिकारी तो अधिकारी बाबू राज में भ्रष्टाचार फल फूल रहा है।

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देश के निर्माण में शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, किन्तु कुछ शिक्षक अपने दायित्व का निर्वहन ठीक तरह से नहीं निभाते हुए विभाग में नेतागिरी झाड़ते फिरते है तो वही कुछ शिक्षक अपनी जिम्मेदारी को ईमानदारी से निभाते हुए रिटायर्ड होते है तो पैसे के हवसी बाबू और अफसर उनसे उनकी जीवन की पूंजी जिसे उन्होंने ईमानदारी से सरकार की सेवा से कमाए है उस पर अपना हिस्सा मांगते है। यह हिस्सा 30 हजार से 50 हजार तक बताया जाता है।

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सूत्र बताते है की इन दिनों बीईओ कार्यालय में बाबूराज हावी है। यहां पदस्थ राजकुमार कबीर द्वारा शिक्षकों के रिटायर्ड समय अवधि में मिलने वाली जीपीएफ राशि के आवेदन पर पैसे की मांग की जाती है। यह राशि 30 हजार से 50 हजार तक बताई जा रही है। जिन शिक्षकों द्वारा यह पैसे देने से इंकार किया जाता है उनकी फाइल रोक दी जाती है। जिन शिक्षकों से पैसे मिल जाते है उनकी फाइल बहुत आसान तरीके से पास कर है और अधिकारियों के साइन भी हो जाते है। कार्यालीन कार्यो में सबसे अधिक रूचि बाबू इन्ही कामो में होती है।

गंगाराम साकुरे, प्राचार्य : बिन पैसे न होत काम?

तिलक स्कूल के प्राचार्य भी रिश्वतखोरी में लिप्त

तिलक संकुल प्रभारी गंगाराम साकुरे भी रिश्वतखोरी को लेकर चर्चा में बने रहते है। सूत्रों की माने तो गंगाराम साकुरे शिक्षकों से फाइल साइन करने के चार से पांच हजार रूपये लेते है तो वही प्राइवेट स्कूल के कार्यो के लिए दो हजार से तीन हजार की मांग करते है। जब तक पैसे नहीं मिलते प्राचार्य गंगाराम साकुरे उन्हें अपने दफ्तर में बैठाये रखते है। वही अगर तिलक स्कूल की शिक्षा गुणवत्ता देखे तो शून्य है, जबकि गंगाराम साकुरे प्रभारी प्राचार्य है और अपने छात्रों को पढ़ने व पीरियड लेने की जिम्मेदारी भी उनकी है वह शिक्षा की गुणवत्ता पर ध्यान न देते हुए सिर्फ अपनी जेब गर्म करने का जुगाड़ ढूंढते रहते है। मजे की बात यह है की साकुरे राजनीति करने वाले शिक्षकों की बढ़ावा देते हुए लापरवाह शिक्षकों उनकी मनमानी करने अवसर देते है। प्राचार्य गंगाराम साकुरे के इस रवैया से पुरे स्कूल का माहौल ख़राब है।

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स्कूल से ज्यादा कार्यालीन कार्यो में रूचि

अंबेडकर प्राथमिक माध्यमिक शाला में प्रधान पाठक पद पर पदस्थ नवीन नामदेव अपने स्कूल में शिक्षा पर ध्यान देने की वजाय राजनीती और जीपीएफ के कार्यो पर अधिक ध्यान देते है। एक शिक्षक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया की प्रधान पाठक स्कूल समय में बेवजह स्कूल से चले जाते है। प्रधान पाठक राजनीति दिखाते है हुए विभाग में रौब झाड़ते है। सेवा निवृत होने वाले शिक्षकों को टारगेट कर उनके जीपीएफ की फाइल तैयार करने और उनके काम कराने की जुटे रहते है। इसके एवज में यह शिक्षकों से मोटी रकम वसूलते है।

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