छपारा । राष्ट्रबाण
भारत सरकार और माननीय प्रधानमंत्री भले ही मनरेगा योजना को गरीबों मजदूरों के पेट भरने का बड़ा माध्यम बताएं पर छपारा जनपद की समस्त ग्राम पंचायतों में हाल बहुत बुरे हैं। गरीब और गरीब होते जा रहा है। जबकि अधिकारी व ठेकेदार और कुछ राजनीतिक बिचौलिए फर्श से अर्श पर पहुंच गए हैं। इस जन कल्याणकारी योजना के काम में लगे अतिरिक्त कार्यक्रम अधिकारी ,तकनीकी अमला उपयंत्री ‘एसडीओ ‘ई की मनरेगा योजना में मुख्य भूमिका होती है।
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मनरेगा योजना में स्पष्ट है उद्देश्य
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जानकारी हो कि एकमात्र जनकल्याणकारी मनरेगा योजना एक ऐसी योजना है जोकि सीधे गरीब मजदूरों के हितों के साथ विकास कार्य के नाम से जानी जाती है। जिसमें स्पष्ट है की मनरेगा योजना अंतर्गत कराए जाने वाले कार्यो में कार्यस्थल पर श्रमिकों की उपस्थिति में उनकी मजदूरी भरे जाने मस्टररोल तैयार किया जाना मापांकन पुस्तिका तैयार किया जाने का कार्य किया जाता है।
मनरेगा योजनान्तर्गत ग्राम पंचायत/क्षेत्र पंचायत द्वारा कराये जाने वाले कार्यों की पत्रावली में समस्त आवश्यक अभिलेख यथा-कार्ययोजना, प्राक्कलन, टेण्डर/कुटेशन, तकनीकी स्वीकृति, प्रशासनिक/वित्तीय स्वीकृति, रोजगार मांग-पत्र, मस्टर रोल, माप पुस्तिका, स्थल निरीक्षण/सत्यापन रिपोर्ट, एफ0टी0ओ0, फोटोग्राफ के कार्य पूर्ण होने पर कार्य पूर्ति प्रमाण एवं अनुश्रवण समिति की कार्य एवं गुणवत्ता रिपोर्ट संरक्षित की जाती है । ग्राम पंचायत स्तर पर मजदूरी लागत और सामग्री लागत का अनुपात अधिनियम में निर्धारित 60ः40 के अनुपात के न्यूनतम मापदंड से कम नहीं होना चाहिए। ग्राम पंचायत/क्षेत्र पंचायत द्वारा कराये जा रहे कार्यों का सतत निरीक्षण एवं अनुश्रवण सम्बन्धित अधिकारी/कर्मचारी यथा- सचिव, तकनीकी सहायक, अतिरिक्त कार्यक्रम अधिकारी-मनरेगा एवं खण्ड विकास अधिकारी/कार्यक्रम अधिकारी के द्वारा नियमित रूप से कार्य निर्धारित मॉडल(डिजाइन), गुणवत्तापूर्ण एवं मानक के अनुरूप कराने हेतु उत्तरदायी होेते है। क्षेत्र पंचायतों द्वारा प्रस्तुत कार्य योजना में प्रेषित कार्यो में नाला निर्माण/सफाई, तटबन्ध निर्माण/सफाई, पुलिया एवं इंटरलॉकिंग कार्य एवं तालाब निर्माण/जीर्णोद्धार का कार्य लिया गया है, चैक डेम स्टाप डेम की ऐसी परियोजनाएं जो ग्राम पंचायत के अन्तर्गत/अधीन है, उन्हें ग्राम पंचायत की कार्ययोजना में सम्मिलित कराकर अपने स्तर से प्रशासनिक/वित्तीय स्वीकृति निर्गत कर कार्य कराये जाते हैं। लेकिन छपारा जनपद पंचायत क्षेत्र में अधिकारीयों की मिलीभगत से योजना अधिनियम की प्रक्रिया को दरकिनार कर मनमानी की जा रही है। जो जमीनी स्तर पर हो रहे पक्के निर्माण कार्य और उनकी दूरगामी उपयोगीता, स्थल के चयन से अंदाजा लगाया जा सकता है।
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मनरेगा योजना में ऐसे हो रही मनमानी
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जानकारी हो कि छपारा जनपद में ठेकेदारों के बिना पंचायतों में पत्ता भी नहीं हिल सकता यहां तक समझा जा सकता है कि ग्राम पंचायतों की कार्य योजना भी ठेकेदारों की मनमर्जी से ही तैयार की जाती है। जिसमें छपारा जनपद क्षेत्र में मनरेगा योजना को देख रहे तकनीकी विभाग की मेहरबानी से छपारा जनपद की पंचायतों में एक ही प्रकृति के थोक अनुसार कार्य होते देखे जा सकते हैं। कार्यों की स्वीकृति भी एकजाई के आधार पर जिले के अधिकारी के द्वारा दी जाने वाली मंजुरी भी संदेहस्पद है। जो कार्य एक से प्रकृति के होते हैं वह कार्य सभी पंचायतों में देखे जा सकते हैं। प्रतिवर्ष ऐसे कार्यों का चुनाव किया जाता है जिसमें खुला बंदरबांट ठेकेदार और अधिकारियों के मध्य किया जा सके जिला के तकनीकी सक्षम अधिकारी भी आंख बंद कर स्वीकृति देते आ रहे हैं। जिन पर भी सवाल उठना लाजमी हैं और उक्त कार्यों की दस्तावेजी कार्यवाही प्रस्ताव फाइलें कार्य की स्वीकृति के बाद ही तैयार किये जाते हैं। इस बात पर भी कोई सवाल नहीं किया जा सकता और जब कार्य की स्वीकृति मिलने पर जनपद व जिला क्षेत्र में बैठे अधिकारी कंप्यूटर ऑपरेटरों के माध्यम से तत्काल सिक्योर एप में कार्यों की बुकिंग और प्रत्येक कार्यों पर प्रथम किस्त का भुगतान करवाया जाकर कार्यों को ओंनगोइंग वर्क की श्रेणी में ला दिया जाता है। जिससे वह कार्य योजना के पोर्टल में ओंनगोइंग वर्क दिखाए जाने पर भारत सरकार प्रदेश सरकार वित्तीय व्यवस्था कर योजना में खर्च करती है इन सभी कार्यों में तकनीकी अधिकारीयों व मनरेगा अधिकारीयों की भ्रष्टाचार को बढावा देने की मंशा को प्रथम श्रेणी में मानने पर अतिशयोक्ति नहीं होगी जो केवल और केवल ठेकेदारों को फायदा पहुंचाने के लिए ऐसा किया जा रहा है।
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छपारा जनपद मे योजना प्रारंभ से ही हजारों की संख्या में बनें स्टापडेम
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देश और प्रदेश में मनरेगा योजना जब से प्रारंभ हुई है तब से सिवनी जिले की छपारा जनपद में यही योजना ठेकेदारों को शिकंजे में रहीं है। इस योजना में चेक डैम पुलिया तलाव घाट खेल मैदान ग्रेवल सड़क जैसे कार्यों को अधिक मात्रा में कराया जाता है। इन कामों में प्रत्येक काम की लागत करीब 15 आख रुपए तक होती है उक्त सभी कामों को पंचायत एजेंसी के माध्यम से ठेकेदारों द्वारा मशीनीकरण सुविधाओं से अंजाम दिया जाता है। और 15लाख का एक काम जमीनी स्तर पर महज 5 लाख की लागत का ही होता है। इस तरह एक काम में लगभग ₹10 लाख का खुला भ्रष्टाचार किया जा सकता है। जानकारी हो कि छपारा जनपद की ग्राम पंचायतों में वर्ष 2006 से स्टॉप डेम बनाए जा रहे हैं और आज भी बन रहे हैं। लेकिन उन स्टॉप डेमो की उपयोगिता जनमानस को सुन के बराबर है इतना अवश्य कि मनरेगा के इन स्टॉप डेमो के माध्यम से ठेकेदार और अधिकारी करोड़पति स्तर पर जरूर बन चुके हैं। यह बात छपारा क्षेत्र की जनता भली-भांति जानती और समझती है।
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जल संरक्षण के नाम पर हो रहा भ्रष्टाचार
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योजना अंतर्गत जल संरक्षण के नाम पर पक्के कार्यों में स्टॉप डेम बनाए जा रहे हैं और स्टॉप डेमो में सरकार का करोड़ों रुपए खर्च भी हो रहा है। जिसमें स्टॉप डेम की उपयोगिता और स्थल चैनल पर किसी का ध्यान नहीं है। क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में जहां नाला नालिया नहीं है वहां भी स्टापडेम बनाए जा रहे हैं। जबकि ग्राम क्षेत्रों में वर्षों पूर्व मे ही हजारों चैकडेम बनाए जा चुके हैं और उन में पानी भराव भी नहीं होता ना ही 95 प्रतिशत स्टॉपडेमो कि जनमानस मे कोई उपयोगिता है वर्तमान में भी ऐसे ही स्थानों का चयन किया गया है। जहां ना तो नाला है ना ही जलभराव क्षेत्र है केवल चैकडेम बनाकर अधिकारियों की मिलीभगत से लाखों रुपए का भ्रष्टाचार करना मात्र है। एक तरफ सरकार जल संरक्षण के लिए करोड़ों खर्च कर रही है। लेकिन जमीनी हकीकत में सरकार की एक बड़ी राशि पर ठेकेदारों अधिकारियों द्वारा मिलकर बंदरबांट किया जा रहा है मैटेरियल सप्लायर के नाम पर ठेकेदार पंचायतों में घटिया काम को अंजाम दे रहे हैं और स्थानीय व जिला स्तर के जबाबदार अधिकारी मुखदर्शक बने हुए यदि छपारा जनपद क्षेत्र के सभी स्टाफ की जमीनी स्थिति व भौतिक सत्यापन किया जाए तो यह सामने आएगा कि एक स्टापडेम की लागत खर्च राशि 15 लाख है। उस स्टॉप डेम में महज 5 से 6 लाख रूपये ही खर्च हुआ है। इस तरह एक स्टॉप डैम में 9 से 10 लाख रुपए का खुला भ्रष्टाचार और बंदरबांट देखा वह समझा जा सकता है।
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घुघंसा पंचायत में ठेकेदार और उपयंत्री काट रहे मलाई
जनपद पंचायत छपारा की ग्राम पंचायत घुंघसा ग्राम पंचायतों में एक वर्ष में तीन स्टॉपडेम मनरेगा योजना अंतर्गत बनाए गए हैं और वर्तमान में भी निर्माणाधीन है। इन स्टॉपडेमो की उपयोगिता देख कर के ही सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। कि जनमानस में स्टॉप डेम की क्या उपयोगिता है एक स्टॉप डेम 14 से 15लाख रुपए खर्च लागत का बताया जा रहा है। लेकिन मौके पर उस स्टॉप डेम में महज पांच से छः लाख रूपये हक खर्च हुए होंगे इस तरह ठेकेदार और उपयंत्री ने मिलकर घुंघसा पंचायत में स्टापडेम के नाम पर लाखों रुपए की बंदरबांट किया है। यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। यदि जिला में जबाबदार अधिकारी हों तो वह पंचायत में जाकर एक वर्ष के अंदर बने स्टॉपडेम व वर्तमान में निर्माणाधीन स्टाफ की मौका स्थिति का जायजा लेकर सहज ही अंदाजा लगा सकते हैं कि उपयंत्री ‘एसडीओ और ठेकेदार मिलकर मनरेगा योजना में कैसे लाखों का पलीता लगाकर मालामाल हो रहे हैं।