बालाघाट, राष्ट्रबाण। महाकौशल के राजनैतिक इतिहास में परिवारवाद का भी अपना एक इतिहास है। पिता के नाम की शह बच्चो को राजनीति का रोगी बना देती है। शीर्ष नेतृत्व से लेकर एक कार्यकर्ता तक परिवावाद वाली राजनीति, ना सिर्फ लोकतंत्र को कमजोर बना देती है, बल्कि ऐसी राजनीति लोकतंत्र की भावना के विपरित भी शुरू हो जाती है। हम सब जानते है कि आगामी वर्ष में विधानसभा चुनाव होने है और जनप्रतिनिधि परिवारवाद, जातिधर्म जैसी दलगत भावना से ऊपर उठकर सिर्फ जनसेवन बनने के वादे करते नजर आ रहे है। लेकिन बालाघाट जिले की लांजी विधानसभा क्षेत्र में परिवारवाद का बुखार खूब उबाल मार रहा है। पिता के नाम की शह मिलते ही हीना कावरें पहली बार वर्ष 2013 में विधायक बनी और उसके बाद वर्ष 2018 में भी दोबारा चुनाव जीतकर आई, कांग्रेस सरकार में विधानसभा उपाध्यक्ष भी बनाई गई। लेकिन हीना कावरें अब महाकौशल के दिग्गज नेताओं में अपना सिक्का जमाना चाह रही है और इसके लिये हीना ने पूरी रणनीति भी तैयार कर ली है। हिना कावरे अपने पिता स्वर्गीय लिखिराम कावरे की तरह अपने नाम का भी परचम लहराने के रंगीन ख्वाब सजा रही है। यकिन मानो, अब उस हीना कावरे ने कमलनाथ के बाद खुद को महाकौशल का बडा नेता बताना शुरू कर दिया है। क्षेत्र के विकास में फिसड्डी रही हिना, जिसने अपने 10 साल के विधायकी कार्यकाल में खुद के दम पर कोई वर्चस्व भी नही बना पाई है वह महाकौशल का नेतृत्व की ढींगे हांक रही है।
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राजनैतिक जानकार बताते है कि हीना कावरें (Hina Kavre) सिर्फ पिता के नाम की बदौलत ही दो बार चुनाव जीत पाई है, परंतु इस बार हीना कावरे अपने घंमड के कारण चुनावी मैदान में मात खा सकती है। वर्ष 2018 में हीना कावरे जब दूसरी बार विधानसभा चुनाव जीतकर आई थी तो कमलनाथ (Kamal Nath) ने हीना पर भरोसा जताते हुए अपनी सरकार में विधानसभा उपाध्यक्ष बनाया था और उम्मीद जताई थी कि हीना कुछ अच्छा कार्य करेगी। परंतु पिता के नाम पर विजयश्री हासिल करने वाली हीना पद और ओहदे के घमंड में इतनी मशगुल रही कि उसने कमलनाथ के विचारो पर खरा उतरना भी मुनासिब नहीं समझा। विधानसभा उपाध्यक्ष बनने के बाद इन्हे अक्सर क्षेत्र की जनता के बीच अपने बडबोलेपन में यह भी कहते हुए सुना गया कि वह अब मध्यप्रदेश में कांग्रेस के बडे नेताओं मे से एक नेता बन चुकी है, भविष्य में कमलनाथ जी के बाद वह कांग्रेस की मुख्यमंत्री बनक़र दिखाएगी? हिना के इस अपनी ढपली अपना राग को लेकर क्षेत्र में यह चर्चा होने लगी कि कम समय में बडी उपलब्धी मिलते ही हीना कावरे का घमंड अब सर चढकर बोलने लगा है। पिता के आदर्शो को कुचलते हुए जनता के बीच हीना कावरे का ऐसा बड़बोलापन वाला बर्ताव उनकी राजनीती के लिए हानिकारक है।
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ऐसे अनेको मुखर वादो और बडबोलेपन के कारण क्षेत्र की जनता को खुश ना कर पाने की वजह से हीना को भी यह समझ आ गया कि जनता इस बार उन्हें वास्तविकता का आईना जरूर दिखायेगी, तो साथ ही हीना ने अपने भाई पवन कावरे को राजनीति में सक्रिय करने का मन बना लिया। जहां परिवारवाद की श्रृखंला को आगे बढाते हुए राजनीति में भाई पवन कावरें को भी सक्रिय करना शुरू कर दिया है। सुत्र बताते है कि हीना कांवरे ने अपने भाई पवन कांवरे को कार्यवाहक जिलाध्यक्ष बनाने का मन बनाते हुए उसका रास्ता भी खोज निकाला है।
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इधर, प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ को भी लांजी क्षेत्र में लोधी चेहरे की तलाश है, क्योकि लांजी विधानसभा क्षेत्र लोधी बाहुल्य क्षेत्र है और हीना कावरे, कमलनाथ की इस सोच को पहले ही भांप चुकी है। यदि पीसीसी चीफ कमलनाथ ने लांजी क्षेत्र में चेहरा बदलने की तैयारी की तो हीना अपने भाई को आगे क़र देगी और भाई को हर हाल में विधानसभा की टिकट दिलाने की कोशिश करेगी और खुद लोकसभा की तैयारी में जुट जायेगी। जिसकी हीना कावरे द्वारा एक कोशिश पिछले लोकसभा चुनाव में ही की जा चुकी है, लेकिन लोकसभा चुनाव के लिए हुए कमलनाथ के सर्वे अनुसार मधु भगत का वर्चस्व हीना से ज्यादा था, इसलिये हीना को टिकट ना देते हुए कमलनाथ ने मधु भगत को टिकट दी थी। किन्तु गौरीशंकर की रणनीति से मधु को मुंह की खानी पड़ी। एक तरफ हीना कावरे महाकौशल के दिग्गजो में अपना स्थान बनाना चाहती है तो दूसरी तरफ बालाघाट में अपने भाई को सक्रीय कर बालाघाट की राजनीती में अपना दखल भी बरक़रार रखना चाहती है। वर्तमान हालातो को देख कर यह कहना गलत नहीं होगा की हीना कावरे जिले की राजनीति में एकछत्र परिवारवाद चलाना चाहती है।