कलकत्ता उच्च न्यायालय ने बंगाल पुलिस को दी नसीहत:मुहर्रम पर लगातार ड्रम बजाना, यह कहीं लिखा तो नहीं है

Rashtrabaan

कलकत्ता, राष्ट्रबाण। कोलकाता उच्च न्यायालय ने गुरुवार को मौखिक रूप से की गई टिप्पणी में, बंगाल पुलिस को घेरे में लिया है। कोर्ट ने कहा है कि “ये नहीं कहा जा सकता है कि एक नागरिक को कुछ ऐसा सुनने के लिए मजबूर किया जाना चाहिए जो उसे पसंद नहीं है या जिसकी उसे आवश्यकता नहीं है।” आपको बता दें कि मुहर्रम त्योहार से पहले कलकत्ता उच्च न्यायालय की इस मौखिक टिप्पणी के बाद पुलिस भी सतर्क हो गई है। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल पुलिस और राज्य के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को कथित ढोल-नगाड़ों और खुली हवा में रसोई के कारण होने वाले सार्वजनिक उपद्रव की घटनाओं को नियंत्रित करने के निर्देश जारी किए हैं। मुख्य न्यायाधीश टीएस शिवगणनम और न्यायमूर्ति हिरण्मय भट्टाचार्य की खंडपीठ ने कहा कि राज्य को संविधान के अनुच्छेद 25(1) और अनुच्छेद 19(1)(ए) के बीच संतुलन स्थापित करना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि ढोल बजाना लगातार नहीं चल सकता है। कोर्ट ने इसके साथ ही पुलिस को ढोल बजाने के समय को रेगुलेट करते हुए तुरंत सार्वजनिक नोटिस जारी करने का निर्देश दिया। इसमें सुझाव दिया गया कि सुबह दो घंटे और शाम को दो घंटे की अनुमति दी जानी चाहिए। सुबह 8 बजे से पहले शुरू नहीं होना चाहिए। स्कूल जाने वाले बच्चे होंगे, परीक्षाएं होंगी, बूढ़े और बीमार लोग होंगे…आम तौर पर आप सुबह दो घंटे, शाम को दो घंटे की अनुमति देते हैं। लेकिन शाम 7 बजे के बाद यह ऐसा नहीं होना चाहिए।

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याचिकाकर्ता की दलील..

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कोर्ट के इस आदेश के बाद याचिकाकर्ता ने दलील देते हुए कहा कि उसके इलाके में मुहर्रम त्योहार के बहाने स्थानीय ‘गुंडे’ देर रात तक लगातार ढोल बजाए जाते थे। जब याचिकाकर्ता ने सहायता के लिए जब पुलिस से संपर्क किया था, तो उसने कुछ नहीं सुना और पुलिस ने उसे “अदालत के आदेश के साथ वापस आने” के लिए कहा। पीठ ने चर्च ऑफ गॉड (फुल गॉस्पेल) इंडिया बनाम केकेआर मैजेस्टिक कॉलोनी वेलफेयर मामले पर भरोसा किया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने धर्म के आधार पर ध्वनि प्रदूषण से संबंधित इसी तरह के मुद्दे पर विचार किया और माना कि कोई भी धर्म यह नहीं बताता कि शांति भंग करके प्रार्थना की जानी चाहिए।

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