फडणवीस ने खुद बढ़ाई शिंदे की ताकत

महाराष्ट्र के सभी विभागों की फाइलें अब से सबसे पहले उपमुख्यमंत्री और वित्तमंत्री अजित पवार के पास जाएंगी, फिर उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के जरिए मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस तक पहुंचेंगी

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Fadnavis increased Shinde's power

बढ़ती दूरियों को किया सिरे से खारिज


मुंबई.राष्ट्रबाण। सीएम फडणवीस के एक बड़े फैसले ने सियासी गलियारों में नई चर्चाओं को जन्म दे दिया है। मिली जानकारी के मुताबिक, महाराष्ट्र के सभी विभागों की फाइलें अब से सबसे पहले उपमुख्यमंत्री और वित्तमंत्री अजित पवार के पास जाएंगी, फिर उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के जरिए मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस तक पहुंचेंगी। इस फैसले को लेकर कहा जा रहा है कि सीएम फडणवीस ने एकनाथ शिंदे की सरकार में स्थिति को और मजबूत करने के लिए यह कदम उठाया है। साथ ही कैबिनेट में दोनों उपमुख्यमंत्रियों को समान अधिकार देने की दिशा में यह बड़ा फैसला किया गया है।

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शिंदे ने भी ऐसा ही किया था


राज्य की मुख्य सचिव सुजाता सौनिक ने मंगलवार को इस संबंध में एक आधिकारिक आदेश जारी किया। जब एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने सभी सरकारी फाइलों को पहले तत्कालीन उपमुख्यमंत्री और गृहमंत्री, कानून और न्याय मंत्री देवेंद्र फडणवीस के पास भेजने और फिर उनके पास लाने का आदेश जारी किया था। इस व्यवस्था के कारण फडणवीस की भूमिका हर छोटे-बड़े फैसले में अहम बनी रही थी। लेकिन जब वे खुद मुख्यमंत्री बने, तो दोनों उपमुख्यमंत्रियों- एकनाथ शिंदे और अजित पवार के अधिकारों को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं थी।

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यह व्यवस्था अब की गई है


अब तक, वित्त एवं योजना मंत्री के रूप में अजित पवार के पास विभिन्न विभागों की फाइलें आती थीं और सीधे मुख्यमंत्री के पास भेजी जाती। वहीं, शिंदे के पास मौजूद शहरी विकास एवं गृहनिर्माण विभाग की फाइलें भी अजित पवार के जरिए मुख्यमंत्री तक पहुंचती थीं। लेकिन अब नए फैसले के तहत, अजित पवार के पास आने वाली सभी सरकारी फाइलें पहले एकनाथ शिंदे के पास जाएंगी और फिर मुख्यमंत्री फडणवीस के पास अंतिम निर्णय के लिए भेजी जाएंगी।

बदलाव के पीछे अलग गणित


इस बदलाव के पीछे राजनीतिक समीकरणों की भी गहरी गणित देखी जा रही है। चर्चा है कि यह फैसला सीधे तौर पर अजित पवार के बढ़ते प्रभाव को कम करने की कोशिश है। क्योंकि इस बदलाव से अब प्रशासनिक निर्णयों में एकनाथ शिंदे की भूमिका अहम हो जाएगी। हालांकि, इस फैसले को दोनों उपमुख्यमंत्रियों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश के तौर पर भी देखा जा रहा है।

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