दिल्ली दंगे केस: हाईकोर्ट ने शरजील इमाम और उमर खालिद समेत 9 आरोपियों की जमानत याचिका खारिज की

Rahul Maurya

नई दिल्ली, राष्ट्रबाण: दिल्ली हाईकोर्ट ने 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों से जुड़े बड़ी साजिश के मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। अदालत ने शरजील इमाम, उमर खालिद, खालिद सैफी और तस्लीम अहमद सहित नौ आरोपियों की जमानत याचिकाओं को खारिज कर दिया। यह फैसला जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शैलेंद्र कौर की खंडपीठ ने सुनाया। कोर्ट ने 10 जुलाई को सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था।

पुलिस ने बताया सुनियोजित साजिश

सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस ने जमानत का कड़ा विरोध करते हुए कहा कि यह दंगे स्वतःस्फूर्त नहीं थे, बल्कि एक सोची-समझी साजिश का हिस्सा थे। पुलिस का आरोप है कि आरोपी व्हाट्सएप ग्रुप्स, भाषणों और मीटिंग्स के जरिए माहौल तैयार कर रहे थे ताकि फरवरी 2020 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत यात्रा के दौरान देश को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनाम किया जा सके।

क्या कहा था पुलिस और केंद्र की ओर से

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी थी कि ऐसे मामलों में लंबी हिरासत जमानत का आधार नहीं हो सकती। उनका कहना था कि जब तक फैसला नहीं हो जाता, राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में शामिल लोगों को जेल में ही रहना चाहिए। पुलिस ने शरजील इमाम के विवादित भाषणों और उमर खालिद पर 23 जगहों पर प्रदर्शन आयोजित करने के आरोपों का हवाला दिया।

बचाव पक्ष की दलीलें

दूसरी ओर, आरोपियों के वकीलों ने तर्क दिया कि पांच साल से ज्यादा समय जेल में बिताना और ट्रायल में देरी होना जमानत का आधार बनना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि कई सह-आरोपियों जैसे देवांगना कालिता और नताशा नरवाल को पहले ही जमानत मिल चुकी है। उमर खालिद के वकील त्रिदीप पैस ने कहा कि केवल व्हाट्सएप ग्रुप में शामिल होना अपराध नहीं हो सकता। वहीं, खालिद सैफी की वकील रेबेका जॉन ने यूएपीए कानून के दुरुपयोग पर सवाल उठाए।

कोर्ट का रुख

हालांकि, हाईकोर्ट ने पुलिस के तर्कों को मजबूत माना और कहा कि भाषणों और मीटिंग्स ने लोगों में डर और तनाव का माहौल पैदा किया। अदालत ने माना कि यह पूरा मामला केवल सीएए-एनआरसी विरोध तक सीमित नहीं था, बल्कि इसमें बाबरी मस्जिद, ट्रिपल तलाक और कश्मीर जैसे मुद्दों को भी शामिल कर माहौल भड़काया गया।

गौरतलब है कि फरवरी 2020 में हुए दिल्ली दंगों में 53 लोगों की मौत हुई थी और 700 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। यह हिंसा नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और NRC के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान भड़की थी। शरजील इमाम को अगस्त 2020 और उमर खालिद को सितंबर 2020 में गिरफ्तार किया गया था। उनकी जमानत याचिकाएं 2022 से लंबित थीं। हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद आरोपी पक्ष ने साफ कर दिया है कि वे अब सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे।

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