काठमांडू, राष्ट्रबाण: नेपाल इस वक्त भारी राजनीतिक संकट से जूझ रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के इस्तीफे के बाद भी सड़कों पर प्रदर्शनकारियों का आक्रोश कम नहीं हो रहा। संसद भवन, सरकारी दफ्तरों और ओली के घर तक को आग लगा दी गई है। मौतों का आंकड़ा 22 तक पहुंच गया है, और सवाल ये है कि ओली अब कहां हैं – देश से भागे या छिप गए?
ओली का इस्तीफा और गायब होना
9 सितंबर को भ्रष्टाचार विरोधी प्रदर्शनों के दबाव में ओली को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल को पत्र लिखकर उन्होंने कहा कि देश की असाधारण स्थिति को देखते हुए ये कदम उठा रहे हैं, ताकि राजनीतिक समाधान हो सके। उसके बाद से उनकी लोकेशन रहस्य बनी हुई है।
कुछ रिपोर्ट्स कहती हैं कि वो काठमांडू के किसी सुरक्षित स्थान पर हैं, जबकि अफवाहें दुबई भागने की कोशिश की भी हैं। लेकिन त्रिभुवन इंटरनेशनल एयरपोर्ट बंद होने से ऐसा कुछ नहीं हो सका। ओली का भक्तपुर स्थित बालकोट आवास प्रदर्शनकारियों ने जला दिया। अब तक उनकी कोई सार्वजनिक प्रतिक्रिया नहीं आई है।
सोशल मीडिया बैन से भड़का आंदोलन
सबसे पहले 4 सितंबर को सरकार ने फेसबुक, X (ट्विटर), यूट्यूब, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप समेत 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर बैन लगा दिया था। सरकार का दावा था कि ये कंपनियां नेपाली कानून के तहत रजिस्ट्रेशन नहीं कराईं। 2024 में बने नए कानून के मुताबिक, सभी सोशल मीडिया फर्मों को नेपाल में लोकल ऑफिस खोलना जरूरी था। लेकिन ये कदम युवाओं को चुभ गया।
Gen-Z ने इसे अपनी आवाज दबाने का हथकंडा बताया और 8 सितंबर को सड़कों पर उतर आए। सरकार ने बाद में बैन हटा लिया, लेकिन तब तक आंदोलन भ्रष्टाचार और नेपोटिज्म के खिलाफ फैल चुका था।
युवाओं का गुस्सा: भ्रष्टाचार, नेपोटिज्म और बेरोजगारी
प्रदर्शनकारी अब सिर्फ सोशल मीडिया बैन पर नहीं अटके। उन्होंने भ्रष्टाचार, रिश्तेदारों को फायदा पहुंचाने (नेपोटिज्म) और बढ़ती बेरोजगारी के खिलाफ आवाज उठाई। Gen-Z, जो 13 से 28 साल के युवा हैं, ने इसे “जनरेशनल फ्रस्ट्रेशन” का नाम दिया। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियोज में नेताओं के बच्चों की लग्जरी लाइफस्टाइल दिखाकर आम लोगों की मुश्किलें हाइलाइट की गईं।
आंदोलन नेपाली कांग्रेस कार्यालय, सिंह दरबार (सरकारी मुख्यालय) और कई मंत्रियों के घरों तक पहुंच गया। कुछ जगहों पर जेल तोड़ने की घटनाएं भी हुईं। उग्र भीड़ ने मंत्रियों पर हमले भी किए, जैसे फाइनेंस मिनिस्टर विष्णु प्रसाद पौडेल को पीटा गया।
मौतें और तबाही
प्रदर्शनों में अब तक 22 लोगों की जान जा चुकी है, जबकि 300 से ज्यादा घायल हो चुके हैं। काठमांडू में कर्फ्यू लगा हुआ है, और सेना सड़कों पर तैनात है। त्रिभुवन एयरपोर्ट बंद होने से सभी फ्लाइट्स कैंसल हैं। पर्यटकों को होटलों में ही रखा जा रहा है।
कई प्रमुख इमारतें, जैसे संसद और नेपाली कांग्रेस का मुख्यालय, जलकर राख हो गईं। यूएन ने पुलिस की “अनावश्यक बलप्रयोग” की निंदा की है। स्थिति बेकाबू है, और प्रदर्शनकारी किसी बात को मानने को तैयार नहीं।
ओली के इस्तीफे के बाद राष्ट्रपति पौडेल ने नई सरकार बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। लेकिन नेपाली कांग्रेस में भी फूट है, और कुछ नेता राष्ट्रीय सरकार की मांग कर रहे हैं। युवाओं की मांगों में भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कार्रवाई, अभिव्यक्ति की आजादी और राजनीतिक पदों के लिए रिटायरमेंट एज शामिल है।
ये आंदोलन नेपाल की राजनीति को नया मोड़ दे सकता है, शायद जल्दी चुनाव या राजशाही की वापसी जैसी अटकलों के साथ। फिलहाल, देश अनिश्चितता के दौर से गुजर रहा है।
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