Math Mandir Seoni: सिवनी का प्राचीन मठ मंदिर जहां होती है भक्तो की हर मनोकामना पूरी, जानिए क्या है मंदिर का इतिहास

महंत रुद्र गिर, महंत गियान गिर और नाबालिग चेला दरयाब गिर ने अपने कर्जे की मुक्ति के लिए शिवाला और भूमि को 300 रुपये में लाला कालीचरण को बेच दिया था

Rashtrabaan
शिव भक्तो की आस्था है मठ मंदिर
Highlights
  • 5 फरवरी1857 को जब्त कर लिया था मठ
  • शिव भक्तो की बड़ी आस्था है मठ मंदिर में

सिवनी, राष्ट्रबाण। सिवनी जिला के मुख्यालय में स्थित प्राचीन मठ मंदिर (Math Mandir Seoni) पर शिव भक्तो की बड़ी आस्था है। यहां लोगो में विश्वास है की जो भी व्यक्ति इस मंदिर में आता है उसकी सभी मुरादें पूरी हो जाती है। यही वजह है कि मठ मंदिर शिव भक्तो के लिए आस्था का केंद्र बिंदु है। प्राचीन मठ मंदिर, न सिर्फ आस्था की दृष्टि से बल्कि ऐतिहासिक रूप से भी काफी महत्व रखता है। इस मंदिर के निर्माण के बारे में कई आस्थाएं प्रचलित हैं।

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मठ मंदिर को लेकर लोगो में अलग-अलग राय है। कुछ लोग इसे कलचुरी काल का मानते हैं तो कुछ इसे गोंड शासकों से जोड़ते हैं। तो वहीं कुछ लोगो का कहना है कि मठ मंदिर (Math Mandir) का निर्माण आदि शंकराचार्य के द्वारा किया गया था। यह मठमंदिर काफी प्राचीन है, स्थानीय लोग बताते हैं कि इस मठ में स्थित शिवलिंग की पूजा आदि शंकराचार्य ने भी की थी। चारों पीठों के शंकराचार्य भ्रमण कर इस पवित्र भूमि को पावन कर चुके हैं। तो जगदगुरु स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती लगातार इस पीठ में भ्रमण करते रहे हैं।

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मंदिर के इतिहास को लेकर है कई तरह की बाते प्रचलित है।‘ कल आज और कल’ शीर्षक की पुस्तक में मठ मंदिर का निर्माण कलचुरी कालीन बताया जाता रहा है। बताया जाता है कि सन 1180 के आसपास एक ओर चंदेल और दूसरी ओर मालवा के पवार तथा घर के भीतर गोंड शासकों ने उथल-पुथल मचा दी। कलचुरी काल महाकौशल में 1000 से 1180 तक रहा है। कलचुरी भगवान शिव के अनुयायी थे। उन्होंने जबलपुर, नरसिंहपुर और बालाघाट में विशाल मठ स्थापित किए थे। उनके प्रत्येक लेख ऊँ नमः शिवाय से शुरू होते थे।

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इस बात से यह प्रतीत होता है कि मंदिर कलचुरियों की देन है। कलचुरी साम्राज्य के पतन के पश्चात गोंड शासकों ने गढ़ा मंडला में अपना शासन स्थापित किया। सन 1480 ई. में राजा संग्राम सिंह का शासन शुरू हुआ, उनके शासन काल में 52 गढ़ थे। इन्ही गढ़ों में से जिले का एक गढ़ चांवड़ी का गढ़ था जो वर्तमान में छपारा के नाम से जाना जाता है। ये राजा बड़ा देव यानि शिव के भक्त थे। इन्होने भी अपने शासन काल में कई मठो की स्थापना की। राजा संग्राम सिंह ने जहां भी मठ बनाए वहां तालाब, शिवलिंग और मठ का महंत अवश्य रूप से पाए जाते थे। सिवनी के मठ मंदिर को इसके लिए भी गोंड शासनकालीन माना जाता है। इस बात के पर्याप्त प्रमाण हैं कि मठ मंदिर के खर्च के लिए जिला मुख्यालय के पास का गांव मरझोर माफीशुदा गांव था। बताया जाता है कि मरझोर के मुकद्दम लक्ष्मीनारायण श्रीवास्तव के यहां मंदिर से संबंधित दस्तावेज थे।

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295 रुपये में खरीदा गया था मंदिर
प्राचीन मठ मंदिर के लिए एक बात यह भी चर्चित है कि अंग्रेजी शासन पद्धति में (मौजव कानून सात सन1825ई. में बइलत इजरायडिगरी में मुंसिफी सिवनी छपारा) मालगुजारों ने मरझोर और मठ को 5 फरवरी1857 को जब्त कर लिया था। उसे मनके सिंगई सूखा साव वल्द खुशाल साव परवार सा सिवनी छपारा ने बगीचा और तालाब जमीन को 295 रुपये में खरीदा था। 3 अक्टूबर1867 को निहंस गंगागिर चेला लक्ष्मन गिर ने 350 रुपये में खरीद लिया था। 1870 में इस संपत्ति को लेकर विवाद हुआ। महंत हरकेश गिर की मृत्यु के बाद महंत रुद्र गिर, महंत गियान गिर और नाबालिग चेला दरयाब गिर ने अपने कर्जे की मुक्ति के लिए शिवाला और भूमि को 19 दिसंबर 1873 में 300 रूपये में कालीचरण वल्द बनवारी लाल को बेच दिया।
1915 से 1917 के बीच बुखार के कारण कालीचरण और उनके पुत्र रामजीवन की मृत्यु हो गई उसके बाद उनकी पत्नी बिरजा बाई ने यह मंदिर और जमीनसिवनी के जमींदार दादू साहब को बेच दिया।

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मंदिर में है जीवित समाधी
मंदिर में जीवित समाधि का भी उल्लेख है। वर्ष 2002 में गुरु रतनेश्वर दिघोरी की प्राण प्रतिष्ठा के दौरान प्रकाशित मैगजीन में बताया गया कि इस मठ में जीवित समाधि भी है, जो अन्य किसी दादू साहब के परिवार से ही थे, जिनके द्वारा शिवलिंग सिर पर रखकर जिंदा समाधि ली गई थी।

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सिद्ध धुनि का भी वर्णन, तो मोती ताल बना मठ तालाब
प्राचीन मठ मंदिर परिसर में सिद्घ धूनी का वर्णन भी मिलता है, जो अज्ञात कारणों से बुझ गई थी। उसे पूर्व दिवंगत नगरपालिका अध्यक्ष स्व. मूलचंद दुबे द्वारा पुनः प्रज्ज्वलित करवा दिया गया था। इस मठ से लगा हुआ वबहुआ नामक एक तालाब भी है, जिसे मोती तालाब के नाम से जाना जाता था। यह मठ मंदिर के समीप होने के बाद मठ तालाब के रूप में चर्चित हो गया।

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