ट्रंप का बड़ा ऐलान: 2026 मध्यावधि चुनावों से पहले मेल-इन बैलट और वोटिंग मशीनों पर रोक, पेपर वोटिंग को बताया सुरक्षित

Rahul Maurya

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 2026 के मध्यावधि चुनावों से पहले मेल-इन बैलट और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों को खत्म करने का ऐलान किया है। उन्होंने सोमवार को अपने सोशल मीडिया मंच ट्रुथ सोशल पर कहा कि वह एक एग्जीक्यूटिव ऑर्डर जारी करेंगे, जिसके तहत इन दोनों प्रणालियों पर रोक लगेगी। ट्रंप का दावा है कि मेल-इन वोटिंग और वोटिंग मशीनें चुनावी धोखाधड़ी का कारण बन सकती हैं, क्योंकि इन्हें हैक करना आसान है। उन्होंने वॉटरमार्क पेपर बैलट को अधिक सुरक्षित, सस्ता, और तेज़ बताया। इस घोषणा ने अमेरिका में तीखी बहस छेड़ दी है, क्योंकि डेमोक्रेट्स का कहना है कि मेल-इन वोटिंग बुजुर्गों और दिव्यांगों के लिए मतदान को आसान बनाती है।

मेल-इन बैलट और मशीनों पर क्यों सवाल

ट्रंप लंबे समय से मेल-इन बैलट और वोटिंग मशीनों को लेकर सवाल उठाते रहे हैं। उनका दावा है कि ये प्रणालियाँ चुनावी नतीजों में हेरफेर की आशंका बढ़ाती हैं। 2020 के राष्ट्रपति चुनाव में अपनी हार के बाद उन्होंने बार-बार कहा कि मेल-इन वोटिंग की वजह से धोखाधड़ी हुई, हालाँकि इसके पक्ष में कोई ठोस सबूत नहीं मिले।

ट्रंप ने अपने हालिया बयान में कहा कि वॉटरमार्क पेपर बैलट न केवल सस्ते हैं, बल्कि इनसे नतीजे तुरंत और स्पष्ट मिलते हैं। उन्होंने दावा किया कि अमेरिका दुनिया का इकलौता देश है जो अभी भी मेल-इन वोटिंग का इस्तेमाल करता है, और अन्य देशों ने इसे धोखाधड़ी की वजह से बंद कर दिया। हालाँकि, विशेषज्ञों का कहना है कि कई देश सुरक्षित तरीके से मेल-इन वोटिंग का उपयोग करते हैं।

डेमोक्रेट्स का विरोध और कानूनी चुनौती

डेमोक्रेट्स ने ट्रंप के इस कदम का कड़ा विरोध किया है। उनका कहना है कि मेल-इन बैलट उन लोगों के लिए जरूरी हैं जो व्यक्तिगत रूप से वोट नहीं डाल सकते, जैसे बुजुर्ग, दिव्यांग, या विदेश में रहने वाले नागरिक। 2024 के चुनाव में 30.3% वोट मेल-इन बैलट के जरिए डाले गए, जो 2020 के 43% से कम है, लेकिन फिर भी यह एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

डेमोक्रेट्स का तर्क है कि इस प्रणाली को खत्म करना लाखों मतदाताओं के अधिकारों का हनन होगा। इसके अलावा, अमेरिकी संविधान राज्यों को चुनाव आयोजित करने का अधिकार देता है, और ट्रंप का एग्जीक्यूटिव ऑर्डर कानूनी चुनौतियों का सामना कर सकता है। मार्च 2025 में ट्रंप का एक ऐसा ही आदेश, जिसमें मेल-इन बैलट की समय सीमा और नागरिकता सत्यापन की शर्तें थीं, अदालत ने खारिज कर दिया था।

पेपर बैलट का प्रस्ताव

ट्रंप ने वॉटरमार्क पेपर बैलट को अपनाने की वकालत की है, जिसे वह तेज़, सस्ता, और पारदर्शी मानते हैं। उनके मुताबिक, वोटिंग मशीनें न केवल महंगी हैं, बल्कि इन्हें हैक करने का जोखिम भी रहता है। उन्होंने दावा किया कि पेपर बैलट से नतीजे उसी रात स्पष्ट हो जाते हैं, जिससे चुनावी प्रक्रिया में विश्वास बढ़ता है। हालाँकि, विशेषज्ञों का कहना है कि मेल-इन बैलट और वोटिंग मशीनों में सख्त सुरक्षा उपाय हैं, और बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी का कोई सबूत नहीं मिला है। 2022 में तत्कालीन अटॉर्नी जनरल विलियम बार ने भी कहा था कि 2020 के चुनाव में धोखाधड़ी का कोई ऐसा सबूत नहीं मिला जिसने नतीजे बदले हों।

ट्रंप का पुराना रुख और विरोधाभास

ट्रंप का मेल-इन वोटिंग पर रुख समय-समय पर बदलता रहा है। 2024 के चुनाव में उन्होंने अपने समर्थकों से मेल-इन वोटिंग का इस्तेमाल करने की अपील की थी, लेकिन अब इसे ‘घोटाला’ करार दे रहे हैं। ट्रंप ने अपने बयान में डेमोक्रेट्स पर आरोप लगाया कि वे मेल-इन बैलट के बिना ‘चुनाव जीत ही नहीं सकते’। उन्होंने इसे अपनी व्यापक नीतियों, जैसे सीमा सुरक्षा और सामाजिक मुद्दों, से भी जोड़ा। ट्रंप ने कहा कि बिना ‘निष्पक्ष और ईमानदार चुनाव’ के देश का अस्तित्व खतरे में है। इस बयान ने अमेरिका में राजनीतिक माहौल को और गरमा दिया है, क्योंकि डेमोक्रेट्स इसे मतदाता अधिकारों पर हमला मान रहे हैं।

कानूनी और व्यावहारिक चुनौतियाँ

ट्रंप का दावा है कि राज्य केवल संघीय सरकार के ‘एजेंट’ हैं और उन्हें राष्ट्रपति के निर्देश मानने होंगे। लेकिन अमेरिकी संविधान के तहत राज्यों को अपने चुनाव आयोजित करने की स्वतंत्रता है, और केवल कांग्रेस को नियम बनाने का अधिकार है। विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप का प्रस्तावित आदेश कई राज्यों के विरोध को झेलेगा, और इसे लागू करना मुश्किल होगा। जून 2025 में एक संघीय जज ने ट्रंप के पिछले आदेश को अवैध ठहराया था, जिसमें उन्होंने मेल-इन बैलट की गिनती की समय सीमा बदलने की कोशिश की थी। इसके अलावा, मेल-इन वोटिंग को पूरी तरह खत्म करने के लिए व्यापक बुनियादी ढांचा और कानूनी बदलाव चाहिए, जो 2026 से पहले लागू करना चुनौतीपूर्ण होगा।

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