ट्रंप का दवाओं पर 200% टैरिफ का प्लान, भारत की फार्मा इंडस्ट्री पर क्या होगा असर?

Rahul Maurya

वाशिंगटन, राष्ट्रबाण: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आयातित दवाओं पर 200% या उससे भी ज्यादा टैरिफ लगाने की योजना का ऐलान किया है। उनका मकसद दवा निर्माण को विदेशों से वापस अमेरिका लाना है। ट्रंप ने कहा कि इस नीति को लागू होने में एक से डेढ़ साल का वक्त लग सकता है, ताकि कंपनियाँ तैयारी कर सकें। लेकिन इस घोषणा ने भारत जैसे देशों में हलचल मचा दी है, जो अमेरिका को सस्ती जेनेरिक दवाएँ निर्यात करते हैं। आइए जानते हैं, भारत की फार्मा इंडस्ट्री पर इसका क्या असर पड़ सकता है।

भारत की जेनेरिक दवाओं पर खतरा

भारत को ‘विश्व की फार्मेसी’ कहा जाता है, क्योंकि ये दुनिया का सबसे बड़ा जेनेरिक दवा निर्यातक है। 2024-25 में भारत ने अमेरिका को 9.8 अरब डॉलर की दवाएँ निर्यात कीं, जो भारत के कुल फार्मा निर्यात का 40% है। अमेरिका में भरी जाने वाली 90% जेनेरिक दवाओं में भारत का योगदान है। लेकिन ट्रंप का 200% टैरिफ का प्रस्ताव भारतीय दवा कंपनियों के लिए बड़ा झटका हो सकता है। इससे उनकी कीमतों में बढ़ोतरी होगी, जिससे अमेरिकी बाजार में उनकी प्रतिस्पर्धा कमजोर पड़ सकती है।

टैरिफ का असर

विशेषज्ञों का कहना है कि इतना भारी टैरिफ दवाओं की कीमतों को आसमान छू सकता है। खासकर जेनेरिक दवाएँ, जो कम मुनाफे पर बिकती हैं, सबसे ज्यादा प्रभावित होंगी। एक अनुमान के मुताबिक, 25% टैरिफ भी अमेरिका में दवाओं की लागत को 51 अरब डॉलर तक बढ़ा सकता है। अगर 200% टैरिफ लागू हुआ, तो दवाओं की कमी और महंगाई का खतरा और बढ़ जाएगा। भारतीय कंपनियाँ या तो लागत खुद झेलेंगी, या इसे ग्राहकों पर डालेंगी, जिससे अमेरिकी मरीजों को नुकसान होगा।

ट्रंप का मकसद: अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग

ट्रंप का कहना है कि टैरिफ से फार्मा कंपनियाँ अमेरिका में अपनी फैक्ट्रियाँ लगाएँगी, जिससे वहाँ रोजगार बढ़ेगा। कुछ बड़ी कंपनियाँ जैसे जॉनसन एंड जॉनसन और एलि लिली ने पहले ही अमेरिका में निवेश की घोषणा कर दी है। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि दवा निर्माण को पूरी तरह अमेरिका में शिफ्ट करना आसान नहीं है। इसके लिए 3-5 साल का वक्त और भारी निवेश चाहिए। भारत जैसे देशों की सस्ती और गुणवत्तापूर्ण दवाओं का विकल्प ढूँढना अमेरिका के लिए चुनौती होगा।

भारतीय फार्मा कंपनियों की चिंता

भारत की बड़ी फार्मा कंपनियाँ जैसे सन फार्मा, सिप्ला, और डॉ. रेड्डीज़ 30-50% राजस्व अमेरिकी बाजार से कमाती हैं। टैरिफ बढ़ने से इनके मुनाफे पर असर पड़ सकता है। कुछ कंपनियों ने अमेरिका में अपनी फैक्ट्रियाँ लगाने की योजना बनाई है, लेकिन जेनेरिक दवाओं का कम मुनाफा इस प्रक्रिया को मुश्किल बनाता है। उद्योग विशेषज्ञों का कहना है कि टैरिफ लागू होने पर कुछ कंपनियाँ अमेरिकी बाजार छोड़ भी सकती हैं।

क्या ये सिर्फ सियासी दाँव है?

कई विश्लेषकों का मानना है कि 200% टैरिफ की बात शायद ट्रंप की सौदेबाजी की रणनीति हो। वो इससे कम टैरिफ पर बातचीत कर सकते हैं। भारत सरकार और फार्मा इंडस्ट्री इस मुद्दे पर अमेरिका के साथ बातचीत कर रही है। भारत ने अमेरिका से आयातित दवाओं पर 10% टैरिफ हटाने का प्रस्ताव दिया है, ताकि टैरिफ युद्ध से बचा जा सके। लेकिन अगर टैरिफ लागू हुआ, तो भारत को अपने निर्यात बाजारों में विविधता लाने की जरूरत होगी।

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