प्रशांत किशोर लड़ेंगे करगहर से बिहार चुनाव, तेजस्वी यादव को मिली राहत

Rahul Maurya

पटना,राष्ट्रबान: जन सुराज पार्टी के संस्थापक और मशहूर रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में उतरने का फैसला कर लिया है। उन्होंने रोहतास जिले की करगहर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की घोषणा की है। एक डिजिटल कॉन्क्लेव में बोलते हुए प्रशांत ने कहा कि करगहर उनकी जन्मभूमि है, और वो यहाँ से अपनी सियासी पारी शुरू करना चाहते हैं। इस ऐलान ने बिहार की सियासत में नई हलचल पैदा कर दी है।

तेजस्वी यादव को राहत

प्रशांत किशोर ने पहले राघोपुर सीट से चुनाव लड़ने की बात कही थी, जो RJD नेता तेजस्वी यादव का गढ़ है। उस बयान के बाद महागठबंधन के नेताओं ने उन पर बीजेपी की ‘बी टीम’ होने का आरोप लगाया था। लेकिन अब करगहर सीट चुनकर प्रशांत ने सियासी समीकरण बदल दिए हैं। अगर तेजस्वी 2025 में राघोपुर से फिर चुनाव लड़ते हैं, तो उन्हें अपनी सीट पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इससे वो बिहार के अन्य हिस्सों में अपनी पार्टी के लिए प्रचार पर फोकस कर सकेंगे।

करगहर सीट का समीकरण

करगहर विधानसभा सीट ब्राह्मण बहुल मानी जाती है। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में यहाँ से कांग्रेस के संतोष मिश्रा ने जीत हासिल की थी, जबकि जेडीयू के वशिष्ठ सिंह दूसरे नंबर पर रहे थे। प्रशांत किशोर ने कहा, “हर किसी को अपनी जन्मभूमि और कर्मभूमि से चुनाव लड़ना चाहिए। करगहर मेरी जन्मभूमि है, और मैं यहाँ से अपनी लड़ाई शुरू करूँगा।” लेकिन विपक्षी नेताओं का मानना है कि प्रशांत के लिए ये सीट जीतना आसान नहीं होगा।

विपक्ष का तंज: ‘जमानत बचाना मुश्किल’

प्रशांत के इस ऐलान पर जेडीयू और कांग्रेस ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। जेडीयू प्रवक्ता अभिषेक झा ने कहा कि प्रशांत किशोर को करगहर में कड़ी चुनौती मिलेगी और उनकी भूमिका ‘वोटकटवा’ की होगी। उन्होंने दावा किया कि प्रशांत की पार्टी को जमानत बचाना भी मुश्किल होगा। वहीं, कांग्रेस प्रवक्ता असित नाथ तिवारी ने तंज कसते हुए कहा कि प्रशांत का हाल आनंद मोहन जैसा होगा, जिन्हें पहले चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था।

प्रशांत किशोर की रणनीति

प्रशांत किशोर, जो पहले कई पार्टियों के लिए चुनावी रणनीतिकार रह चुके हैं, अब जन सुराज के जरिए बिहार की सियासत में अपनी अलग पहचान बनाना चाहते हैं। उनकी पार्टी का फोकस बिहार में शिक्षा, रोजगार, और विकास जैसे मुद्दों पर है। करगहर से चुनाव लड़ने का उनका फैसला उनकी जड़ों से जुड़ने का संदेश देता है, लेकिन सियासी जानकार मानते हैं कि उनके सामने अपनी विश्वसनीयता साबित करने की बड़ी चुनौती है।

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