सिवनी, राष्ट्रबाण। चुनावी साल में बिल में घुसे नेताओं को जनता की सुध आ गई है। वह अपने आपको जनता का हितैषी बताने से नहीं चूक रहे है तो पार्टी में वह अपने आपको बड़ा जनाधार वाले नेता बताने के लिए तरह तरह झूठी शान बता रहे हैं। जबकि अपनी झूठी शान और ढींगे हांकने वाले नेताओं का अपने वार्ड में कोई वजूद नहीं है वह अपने आपको कांग्रेस का जिताऊ प्रत्याशी बता रहे है।
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बात कांग्रेस पार्टी की करें तो इन दिनों राजा बघेल अपने आपको कांग्रेस का चमकदार चेहरा बता रहे है और अपने चहिते (चमचो) के बीच अपने आपको प्रत्याशी बताने से नहीं चूक रहे है। लेकिन सवाल यह उठता है की राजा बघेल अगर जनता के बीच इतने लोकप्रिय है तो वह अपने वार्ड रानी दुर्गावती वार्ड से कांग्रेस को जिताने में असफल क्यों रहते है।
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ज्ञात हो की रानी दुर्गावती वार्ड से लंबे समय से कांग्रेस का वार्ड पार्षद नहीं जीता है। जबकि इसी वार्ड से कांग्रेस के बड़े नेता माने जाने वाले राजा बघेल आते है और वह लगातार अपने आपको सिवनी विधानसभा का दावेदार बताते है। लेकिन वह आपने ही वार्ड से कांग्रेस का वार्ड पार्षद को जीत दिलाने में फेल हुए है। राजनैतिक जानकार बताते है की राजा बघेल के पुराने कर्मो की वजह से जनता में उन्हें पसंद नहीं करती। कभी राजा बघेल की गुंडागर्दी से जनता त्रस्त थी तो नगर पालिका में उनका हस्तक्षेप किसी से छुपा नहीं है। सूत्रों की माने तो भाजपा शासन में हुए भ्रष्टाचार का कमीशन की मलाई भी राजा बघेल को छिडकी जाती रही है। यही नहीं राजा बघेल पर अपनी पार्टी से विश्वासघात करने और हराने के आरोप भी चर्चित रहे है।
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मजे की बात यह है की राजा बघेल के वार्ड से उनसे मजबूत निर्दलीय नेता है जिसका जीता जागता उदाहरण पिछली पंचवर्षीय में हुए नगर पालिका चुनाव है जिसमे संजीव उर्फ़ मोनू उईके ने निर्दलीय चुनाव लड़ कर कांग्रेस भाजपा को हार का स्वाद चखाया था। लेकिन कांग्रेस से चुनाव लड़ने के पश्चात् उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा।