नई दिल्ली, राष्ट्रबाण। राजनीतिक गलियारों और देश प्रदेश की राजनीति के बाद अब देश के जेलों में भी जातिवाद भेदभाव शुरू हो गया था। जिसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी किए हैं। जिसके बाद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ऐक्शन मोड में आ गए हैं। सरकार ने सभी राज्यों के जेल प्रशासनों को पत्र लिखा है, जिसमें यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है कि उनके मैनुअल या एक्ट में ऐसी कोई भी बात न हो, जो कैदियों को उनकी जाति या धर्म के आधार पर अलग कर रही हो। सरकार ने इस तरह के भेदभाव को संविधान के खिलाफ बताया है। गृहमंत्रालय की तरफ से इस संबंध में एडवाइजरी जारी कर दी गई है। 26 फरवरी को भेजे पत्र में सरकार ने कहा, ‘इस मंत्रालय की जानकारी में यह बात आई है कि कुछ राज्यों में जेल मैनुअल्स में कैदियों को उनकी जाति और धर्म के आधार पर अलग किया गया है और उन्हें अलग-अलग जिम्मेदारियां भी दी गई हैं।’ आगे कहा गया, ‘भारत का संविधान धर्म, जाति, नस्ल, जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव करने मना करता है।’ सरकार ने राज्यों से इस तरह के भेदभाव को खत्म करने के लिए कहा है। साथ ही सरकार ने मॉडल प्रिजन मैनुअल 2016 का भी जिक्र किया और राज्यों से इसे अपनाने के लिए कहा है। इसके अलावा केंद्र ने बीते साल मॉडल प्रिजन एक्ट, 2023 भी अंतिम मुहर लगा दी है। इसमें सुरक्षा मूल्यांकन, जेलों को अलग करने, महिलाओं और ट्रांसजेंडर्स के लिए अलग वार्ड्स और गलत काम करने वाले जेल कर्मचारियों को सजा देने की बात कही गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने जारी की थी एडवाइजरी…
दरअसल, एक जनहित याचिका या PIL दाखिल होने के बाद सुप्रीम कोर्ट की तरफ से 11 राज्यों और केंद्र सरकार को नोटिस दिया गया था। पत्रकार सुकन्या शांता की तरफ से दाखिल PIL में आरोप लगाए गए थे कि जेलों में कथित तौर पर जाति के आधार पर भेदभाव चल रहा है। याचिका के जरिए भेदभाव को बढ़ावा दे रहे प्रावधानों को खत्म करने की बात कही गई थी।