बालाघाट, राष्ट्रबाण। उपलब्धियों को लेकर देश प्रदेश में जब भी बालाघाट जिले के नाम गुंजता है तो यहां रहने वाले हर नागरिक का सीना गर्व से चौडा हो जाता है और सिर आसमान से भी ऊंचा हो जाता है। लेकिन जब कोई नाकामयाबी हासिल होती है तो दिल पसीज जाता है। बालाघाट जिले को अनेक उपलब्धीयां हासिल है। जिनमें कुछ उपलब्धीयां तो प्रकृति की अनमोल देन है, तो कुछ उपलब्धीयां यहां के सच्चे जनसेवन और जनता जनार्धन की देन है। परंतु कुछ जनप्रतिनिधि ऐसे भी है जो अपने स्वार्थ व फायदे के लिये जिले को मिलने वाली उपलब्धीयों को अस्वीकार कर देते है और विरोधी चेहरे के रूप में बेनकाब भी हो जाते है। कुछ भागीदारी तो यहां ने उद्योगपतियों ने भी निभाई है, जिनकी मानसिकता लोभ और लालच भरी है। जिन्हे प्रकृति के संरक्षण और अमीट उपलब्धीयों से कोई सरोकार नही होता है। यह बात इसलियें सार्वजनिक की जा रही है क्योकि जिले को मिलने वाली सोनेवानी अभ्यारण जैसी एक बडी उपलब्धी को यहां के कुछ नेताओ, उद्योगपतियों और रसूखदारो ने लात मारकर ठुकरा दिया।
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लालबर्रा क्षेत्र के सोनेवानी अनुभव क्षेत्र को अभ्यारण्य बनाने या ना बनाने को लेकर बनी संशय की स्थिति अब साफ हो चुकी है और सोनेवानी अभ्यारण्य बनाने जाने को लेकर भेजे गये प्रस्ताव को निरस्त कर दिया गया है। अब सोनेवानी अनुभव क्षेत्र को अभ्यारण नही बनाया जायेगा। जिसकी ओबीसी आयोग अध्यक्ष गौरीशंकर बिसेन ने प्रेसवार्ता लेकर पुष्टी की है। प्रेस से चर्चा के दौरान गौरीशंकर बिसेन कहा कि पिछले 06-07 माह से सोनेवानी को अभ्यारण बनाये जाने को लेकर एक प्रस्ताव भेजा गया था। किसी भी क्षेत्र को अभ्यारण बनाने के लिये रिजर्व फारेस्ट की राज्य स्तरी कमेटी से बात करनी होती है, जिसके चेयरमेन उस प्रदेश के मुख्यमंत्री होते है। हमने सोनेवनी अभ्यारण को लेकर अपना पक्ष रखा, तो वही दूसरी ओर ग्रामीणो ने भी सोनेवानी को अभ्यारण बनाये जाने के प्रस्ताव पर असहमती जताते हुए अभ्यारण बनाने के लिये मना कर दिया है। जिस पर राज्य स्तरी कमेटी के साथ मंथन करके खूब चर्चा की गई और सोनेवानी अभ्यारण के प्रस्ताव को निरस्त कर दिया गया है। अब सोनेवानी को अभ्यारण नही बनाया जायेगा।
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बिसेन ने कहा कि सोनेवानी यदि अभ्यारण बनता है तो उस क्षेत्र के लोगो का जनजीवन प्रभावित होगा। इसके अलावा वन्यप्राणियों को विचरण करने के लिये भी एक लंबे क्षेत्रफल की जरूरत होती है, इस हिसाब से सोनेवानी एक छोटा ईलाका है। जिसके चलते कभी कभी वन्यप्राणी जंगल से निकलकर खेतो तक पहुंच जाते है और इलाके से लगे सोनेवानी, नवेंगांव, चिखलाबर्डी गांवो के किसानो की फसलो को नुकसान भी पहुंचाते है। बिसेन ने कहा कि सोनेवानी क्षेत्र में विचरण करने वाले बाघो की सुरक्षा को लेकर हमारे पास विकल्प है? हम उस क्षेत्र को फेंसिग करके बाघो के लिये एक सुरक्षित एरिया तैयार करेगें। हालांकि बाघो के लिये एक बडे क्षेत्रफल की जरूरत है, परंतु ऐसे क्षेत्र को खुला रखना भी उचित नही है, क्योकि ईलाके के आसपास गांव बसे है। इसलिये सरकार ने सोनेवानी को अभ्यारण बनाने की कार्यवाही स्थगित कर दी गई है। एक सवाल का पटाक्षेप करते हुए बिसेन ने कहा कि हमारे लिये मैगनीज भी आवश्यक है और वन्यजीव भी जरूरी है?
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आपको बता दे, सोनेवानी लालबर्रा वन परिक्षेत्र में जब से बाघो का कुनबा बढा है, तभी से इस ईलाके को अभ्यारण बनाये जाने की कवायद् बढ गई थी। वही वन्यजीव प्रेमियों में भी खुशी का महौल था। उम्मीद थी कि सोनेवानी को सरकार अभ्यारण का दर्जा दे देगी। क्योकि बाघो का कुनबा बढने से इस पर्यटन स्थल के नाम एक बडी मुहर लग जाती और सोनेवानी के अभ्यारण बनने से बालाघाट जिले के नाम एक और बडी उपलब्धी भी जुड जाती है। इसके अलावा स्थानीय लोगो को कई तरह का रोजगार भी मुहैया होता। परंतु इसके बफरजोन में रहने वाले गांवो को विस्थापित करने की चुनौती को मुद्दा बनाते हुए जनप्रतिनिधयों और उद्योगपतियों ने क्षेत्र के ग्रामीणो को बरगलाकर सोनेवानी अभ्यारण बनाये जाने की बात का विरोध जताना शुरू कर दिया। जहां जिले के एक कद्दावर नेता याने ओबीसी आयोग अध्यक्ष गौरीशंकर बिसेन का भी विरोधाभास सामने आया था और उन्होने यहां तक कह दिया था कि ”सोनेवानी अभ्यारण्य बनेगा तो मेरी लाश पर से बनेगा, मै अपने जीते जी सोनेवानी को कभी अभ्यारण बनने नही दूंगा” तो वही दूसरी ओर खनीज निगम अध्यक्ष व वारासिवनी विधायक प्रदीप जायसवाल सोनेवानी को अभ्यारण बनाये जाने के पक्ष में नजर आये थे। जहां ऐसी दो चेहरे वाली राजनीति होने के कारण सोनेवानी अभ्यारण को लेकर काफी संशय की स्थिति बनी हुई थी। इसके लिये भेजे गये प्रस्ताव को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था। लेकिन अचानक प्रस्ताव के निरस्त होने के बाद अब स्थिति स्पष्ठ हो चुकी है कि अब सोनेवानी को अभ्यारण नही बनाया जायेगा। इस खबर से सोनेवानी अभ्यारण के पक्षधार रहे वन्यजीव प्रेमियों का मन भी आहत हो गया और उन्होने इसके पीछे रहे मूल कारण को सार्वजनिक करना शुरू कर दिया। सुत्रो की माने तो गांवो का विस्थापन या अन्य कोई परिस्थिति अभ्यारण का रोड़ा नही बन रही थी, बल्कि अभ्यारण्य क्षेत्र में आने वाली एपीटी मिनरल्स, जेके मिनरल्स और पैसेफिक मिनरल्स मैगनीज खदाने ही इसकी राह में रोडा बन गई थी। क्योकि गाईड लाईन के मुताबिक अभ्यारण्य क्षेत्र में किसी भी प्रकार का खनन पूर्णत: वर्जित है। ऐसे में स्पष्ठ तौर पर माना जा रहा है कि कही ना कही इन तीनो खदानो के उद्योगपतियों के दबाव में आकर सरकार ने सोनेवानी अभ्यारण के प्रस्ताव को निरस्त किया है।